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सुख और दुख दो अलग-अलग बातें नहीं हैं जैसा हम उन्हें जानते हैं, वरन वे एक ही चीज की तारतम्यताएं हैं, एक ही चीज की अलग-अलग क्रमिक स्थितियां हैं। और इसलिए यह भी हो जाता है कि जिसे हम दुख की तरह जानते हैं पहली दफा, अगर उसमें ही हमें रहना पड़े तो थोड़े दिनों में वह दुख नहीं रह जाता, हम उसके आदी और परिचित हो जाते हैं। यहां तक हो सकता है कि हम इतने आदी और परिचित हो जाएं कि वह सुख हो जाए।
मैं एक छोटी सी कहानी जगह-जगह कहता रहा । सीरिया के किन्हीं प्रांतों में एक छोटी सी कहानी प्रचलित है। एक छोटे से गांव में एक बड़ी सुंदर बगिया है, एक मालिन है। खूब फूलों में उसके गंध है। और उसकी एक सहेली एक दिन बाजार में अपना सामान बेचने आई है। वह मछलियां बेचती है। दोनों बचपन में एक ही गांव में पली थीं। बाजार में मिलना हो गया। तो उस मालिन ने मछली बेचने वाली स्त्री को कहा कि आज तुम वापस मत लौटो । पूर्णिमा की रात है, मेरे झोपड़े में रुक जाओ। सुबह चली जाना । बहुत दिन बाद मिलना हुआ था इसलिए वह मछली बेचने वाली औरत मालिन के घर रात रुक गई।
मालिन यह सोच कर कि बहुत दिनों बाद मेरी सहेली आई है, उसने बहुत सारे फूल तोड़े और जहां वह मछली बेचने वाली औरत को सुलाया उसके चारों तरफ फूल बिछा दिए । उस दरवाजे पर उसे सुलाया जिसके करीब से फूलों की गंध बगिया के भीतर आती थी। लेकिन मछली बेचने वाली औरत करवट बदलने लगी। उसे नींद आना कठिन हो गया। वह सुगंध जो थी उसे कष्टप्रद थी, बिलकुल अपरिचित थी, अनजान थी। रात जब आधी बीतने लगी मालिन ने कहा, ज्ञात होता है कोई पीड़ा है, कोई परेशानी है, नींद नहीं आती?
उसने कहा, कोई भी पीड़ा नहीं है, कोई भी परेशानी नहीं है। ये फूल तकलीफ दिए दे रहे हैं। ये फूल हटा दो, दरवाजा बंद कर दो। और जिस टोकरी में मैंने मछलियां बेची हैं उसे उठा लाओ, उस पर थोड़ा पानी छिड़क दो, मेरे पास रख दो। थोड़ी मछलियों की गंध आएगी तो शायद मुझे नींद आ जाए । तो टोकरी पर पानी छिड़क दिया गया और टोकरी रख दी गई। फूल हटा दिए गए। और द्वार बंद कर दिया गया। थोड़ी देर में उसने घर्राटे की सांस लेनी शुरू कर दी और वह गहरी नींद में चली गई। मछलियों की गंध सुखद हो गई थी निरंतर आदत, निरंतर निकटता से। और फूलों की गंध दुखद थी, अपरिचय के कारण, अनजान होने के कारण । उसका आघात नया था, तीव्र था और वेदना देता था ।
हम भी अपने बहुत से कष्टों से धीरे-धीरे परिचित हो जाते हैं।
क्या आपको पता है, जो आदमी पहली दफा सिगरेट पीता है उसमें कोई सुख होता है ? पहली घटना दुख की होती है। ऐसा एक भी मूर्ख इस जमीन पर नहीं है जो सिगरेट पीए और पहली घटना सुख की हो जाए। जो आदमी पहली दफा शराब पीता है, आप सोचते हैं, पहली घटना सुख की होती है ? पहली घटना तिक्त कड़वाहट की, दुख की होती है। लेकिन निरंतर उसके प्रयोग से धीरे-धीरे जो दुखद था वह सुखद हो जाता है । उसे छोड़ना कठिन हो जाता है। क्या आपको ज्ञात है कि बहुत से कष्ट हमने इसी भांति सुख बना लिए हैं और बहुत से दुखों को परिचय से हमने सुख में परिवर्तित कर लिया है? फिर क्या आपको यह पता है कि जो चीज आज सुख देती है कल वही दुख दे सकती है?
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