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हैं। कोई भी वर्ष पैदा हो सकते हैं। ये सब बहुत मूल्य की बात नहीं हैं। मूल्य की बात यह है कि उनके हृदय में क्या हुआ कि वे यह निश्चित रूप से कह सके और अनुभव कर सके कि मैंने आनंद को और ज्ञान को उपलब्ध कर लिया है। आश्वस्त हो सके कि जीवन का जो लक्ष्य है वह आ गया। निर्णीत रूप से यह अनुभव कर सके कि जो भी जानने जैसा है वह मैंने जान लिया है। वह कौन सी घटना उनके भीतर घटी और कैसे घटी, उस क्रांति से वे कैसे गुजरे, उनके हृदय की कुछ थोड़ी सी बातें आपसे कहना चाहूंगा।
सबसे पहली बात जो मुझे दिखाई पड़ती है, वह यह-और वह हममें से बहुत कम लोगों को दिखाई पड़ती है, और जब किसी को दिखाई पड़ जाती है उसका जीवन कुछ और हो जाता है-सबसे पहली बात महावीर के संबंध में विचार करें तो दिखाई पड़ती है: वे बहुत सुख में थे, बहुत सुविधा में थे, बहुत संपत्ति में थे। किसी तरह की असुविधा उन्हें नहीं थी। किसी प्रकार का कष्ट उन्हें नहीं था। किसी प्रकार की चिंता का कोई कारण नहीं था। कोई दरिद्रता में, दीनता में, अस्वास्थ्य में, बीमारी में, रुग्णता में वे नहीं थे। स्वस्थ थे, संपत्ति के बीच थे, सुख और सुविधा के बीच थे।
फिर क्या कारण इस सारी व्यवस्था के बीच उनके चित्त में बना कि यह सारी व्यवस्था उन्हें तृप्त न कर पाई, कुछ और खोज उनके भीतर पैदा हो गई ? जब कोई भी कष्ट न था तो फिर कौन सा दुख था जिसके कारण वे सत्य की, स्वयं की या आत्मा की खोज में गए होंगे? और अगर इस बिंदु पर विचार करेंगे तो एक बहुत सूक्ष्म भेद जो मैं करना चाहूंगा वह यह कि कष्ट
और दुख अलग बातें हैं। एक आदमी हो सकता है बिलकुल कष्ट में न हो और दुख में हो। कष्ट और दुख एक ही बात नहीं हैं।
महावीर किसी कष्ट में नहीं थे, लेकिन जरूर किसी दुख में थे। अगर दुख न होता तो कोई खोज की बात पैदा नहीं होती थी; किसी आत्मा की तलाश में, साधना में जाने का कोई कारण नहीं रह जाता था। तो आपसे मैं यह कहूं, आप में से बहुत लोगों ने कष्ट का अनुभव किया होगा, ऐसे सौभाग्यशाली कम हैं जो दुख का अनुभव करते हैं। और जो दुख का अनुभव करता है वह सत्य की खोज में अनिवार्यरूपेण चला जाता है। कष्ट का अनुभव समस्त लोग करते हैं, दुख का अनुभव बहुत थोड़े लोग करते हैं। आप कष्ट को ही दुख समझ लेते हैं तो भ्रांति हो जाती है। कष्ट दुख नहीं है। इसे थोड़ा समझाऊं तो फिर कुछ और आगे उनके हृदय में प्रवेश आसान हो जाएगा, क्योंकि यह बुनियादी बात है। अगर यह समझ में न आए तो फिर हम महावीर में प्रवेश नहीं कर सकते। उनके हृदय के फिर और पर्दे नहीं उठाए जा सकते हैं।
कष्ट का क्या अर्थ है? कष्ट का अर्थ है कोई शारीरिक असुविधा, कोई भौतिक असुविधा। दुख का यह अर्थ नहीं है। एक आदमी भूखा है तो कष्ट में है, एक आदमी नंगा है तो कष्ट में है, एक आदमी बीमार है तो कष्ट में है। यह दुख नहीं है। और जब कोई कष्ट में होता है तो उसकी खोज सुख के लिए होती है, उसकी खोज सत्य के लिए नहीं होती। जो आदमी कष्ट में है वह सुख का अनुसंधान करेगा, वह सुख को खोजेगा, क्योंकि कष्ट सुख से मिट जाता है। कष्ट, असुविधा सुविधा के जुड़ने से मिट जाती है। कष्ट की अनुभूति अगर चित्त में है तो हमारी खोज सुख के लिए होगी।
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