________________
उसने स्नान किया, उसने पवित्र नामों का स्मरण किया, वह एकांत गांव के बाहर जाकर बैठा, उसने सब उपाय किए, लेकिन बंदर साथ थे। बंदर से अलग होना संभव नहीं रहा। जितने भी उपाय किए - बंदर ही बंदर थे। आंख खोलता तो उनके प्रतिबिंब, आंख बंद करता तो उनके प्रतिबिंब! वह सुबह तक तो विक्षिप्त होने लगा, बंदर ही बंदर घेरे हुए थे ! और कोई भी विचार नहीं रहा चित्त में, सारे विचार विलीन थे; जिन्होंने रोज परेशान किया था, वे विचार अब न थे ! अब केवल एक ही विचार था, क्योंकि एक ही धारणा थी गलत करने की ।
सुबह-सुबह उसने साधु को जाकर क्षमा मांगी, मंत्र वापस लौटा दिया। साधु ने पूछा, क्या दिक्कत हुई ? उसने कहा, अब उसकी बात मत छेड़ो । जो दिक्कत हुई, अब उससे मैं पार नहीं पा सकता। अगर यही शर्त है कि बंदर का स्मरण न आए, तो इस जिंदगी में यह मन से तोड़ना संभव नहीं है।
जो उसके साथ हुआ, वह प्रत्येक के साथ होगा। होने के पीछे वैज्ञानिकता है। गलत नहीं हुआ, ठीक हुआ। संघर्ष का परिणाम है यह, दमन का परिणाम है यह । उन चीजों का दमन नहीं किया जा सकता, जिनकी कोई पाजिटिव सत्ता, जिनकी कोई पाजिटिव एक्झिस्टेंस, जिनकी कोई विधायक सत्ता नहीं है।
जैसे इस कक्ष में अंधेरा हो रहा हो और हम सारे लोग उस अंधेरे को धक्के देकर निकालने लगें तो वह निकलेगा? वह नहीं निकलेगा। आप कहेंगे कि इतनी ताकत लगाई, लेकिन फिर भी नहीं निकला ! असल में ताकत का प्रश्न ही असंगत है । अंधेरा है नहीं, अगर होता तो धक्के देने से निकल सकता है। अंधेरा नकारात्मक है, वह किसी चीज का अभाव है। वह किसी चीज का भाव नहीं है। वह प्रकाश का अभाव है। इसलिए उसे निकाला नहीं जा सकता । प्रकाश को जला लें, वह नहीं पाया जाता।
निकलता नहीं, स्मरण रखें। प्रकाश को जलाने से अंधेरा निकल कर बाहर नहीं चला जाता। प्रकाश के आने से वह नहीं पाया जाता है। वह केवल प्रकाश का अभाव था । उसकी अपनी कोई सत्ता नहीं थी। जिन-जिन चीजों की अपनी कोई सत्ता नहीं है, उन्हें धक्के देकर अलग नहीं किया जा सकता। जिनकी अपनी सत्ता है, उन्हें भर अलग किया जा सकता है।
प्रकाश का अभाव अंधेरा है, ध्यान का अभाव विचार है। इसलिए विचार को निकालना नहीं होता, ध्यान को जगाना होता है। ध्यान में जागरण से विचार का विसर्जन होता है। जिस मात्रा में ध्यान जाग्रत होगा, उसी मात्रा में विचार शून्य की तरफ विलीन होते चले जाएंगे। जिस क्षण परिपूर्ण ध्यान उदभव में आएगा, विचार नकार हो जाते हैं, न हो जाते हैं।
विचार से संघर्ष नहीं - ध्यान के आविर्भाव के लिए प्रयास ! ध्यान के आविर्भाव के लिए
पुरुषार्थ !
फिर क्या अर्थ हुआ ध्यान का ? ध्यान का अर्थ है : चित्त को जागरूकता से, चित्त को अवेयरनेस से, चित्त को विवेक से भरना ।
महावीर ने अपने साधुओं से कहा था, जागो तो विवेक से, सोओ तो विवेक से, चलो तो विवेक से, उठो - बैठो तो विवेक से ।
क्या अर्थ है विवेक का ?
101