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________________ प्रास्ताविक १ मैं महावीर का अनुयाया नही हूँ, प्रेमी हूँ, बस ही जमे क्राइस्ट का, कृष्ण का, बुद्ध का, लाओत्सेवा और मेरी दृष्टि में अनुवायी कभी भी उसे समझ नहीं पाता जिसका वह अनुगमन करता है । । दुनिया म दा ही तरह के लोग हैं । साधारणतया या तो वे अनुयायी होत हैं या विरोधी । न ता अनुयायी समझ पाता है औरन विराया अनुयायी उससे बंध जाता है जिसका वह अनुसरण करता है और विरोधी उससे जिसका वह विरोध करता है । केवल प्रेमी नही वैधता । वह प्रेम जा वापता है प्रेम नहीं होता । महावीर से प्रेम करने में महावीर से बचना नहीं होता। उनसे प्रेम करते हुए ही बुद्ध, कृष्ण और वारस्ट स प्रेम किया जा सकता है । महावार में जो चीज प्रकट हुई और जिससे हम प्रेम करत हैं वह हजार हजार लागा में भी उसी तरह प्रस्ट हुई है। सच पूछिए तो हम महावीर से भी प्रेम नहा करते। वह जो शरीर है ववमान का वह जो जन्मतिथिमा हुआ दशरीर है उनका, यह ता इतिहास की एक रेसा मान है । एक दिन पण हाना और एक दिन मर जाना । प्रेम करन है हम उस ज्योति से जा उस मिट्टी के दीए में प्रक्ट हुइ थी। जो ज्योति से प्रेम करेगा यह दीए से नही गा और जा दीए म बँगा, उस ज्योति के महत्व वा भान न होगा । निश्चित है कि जो दीए से बंध रहा है उसे ज्याति का पता नही । जिस ज्याति का पता चल जाय उस क्या दीए की याद भी रहेगी ? उसे दीया फिर दिखाई भी पड़ेगा ? इसी सदन में एक और बात कह देना चाहता हूँ | मैंने महावीर का ही चर्चा के लिए क्या चुना ? यह तो बहाना है सिफ । वे तो वन ही है जम कोई खूंटो हानी है । उपडा टाँगना प्रयोजा है मेरा । कोई भी सूटी काम दे सकती है। महावीर भी वाम दे सकत हैं ज्याति के स्मरण म बुद्ध भी कृष्ण भी माइस्ट मी । किमो भी सूटी से काम लिया जा सकता है। स्मरण प्रेम मागना है, अनुकरण नहा । और मैं करता हूँ यह स्मरण महावीर का स्मरण नही है | स्मरण है उस तत्र वा जो महावीर म प्रकट हुआ । इस तत्व का स्मरण तलाल आरमस्मरण बन जाता है । महावीर म प्रवट हु ज्योति को यही सायक्ता है कि यह जात्मस्मरण की आर ल जाय । लेकिन महावोर यो पूजा से यह समय नहा । पूजा से आत्मस्मरण नही याता । पूजा आत्मविस्मरण वा उपाय है। अनुपायी मत आदि भी महावीर, बुद्ध, कृष्ण यो सूटिया का उपयोग कर रह हैं आत्मविस्मरण के लिए। पूजा, प्राथना, अचरा-
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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