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________________ सब विस्मरण है । स्मरण का अर्थ है महावीर में उग दिव्य गार को गोजना गो उनमे अभिव्यक्त हुआ था, मनुष्य की सम्भावनाओं के प्रति सजग हो उठना और एम वात की प्रतीति करना कि जो एक मनप्य में मम्भव है, वह फिर मेरी भी मम्मावना बन सकती है। स्मरण करनेवाले पूजा मे न जाकर एक अन्तर्वदना मे, नर नफरिंग मे उतर आते है । वे उस बुझे हुए दीए के ममान होते है जो एक बलते हए, ज्योनिर्मय दीए को देखकर व्यथित हो उठता है और नोचता है कि मैं व्यर्थ हैं, में नाममात्र का दीया हूँ, क्योकि मुझमे वह ज्योति कहां, वह प्रकाश कहाँ ? म निर्फ अवमर हूँ जिसमे ज्योति प्रकट हो सकती है, लेकिन अभी हुई नहीं है। लेकिन बुझे हुए दीयो के बीच बुझा हुआ दीया रखा रहे तो उसे अपनी दशा का नयाल भी नहीं आता, पता भी नहीं चलता। तो करोड बुझे हुए दीयो के बीच में भी जो स्मरण नहीं आ सकता वह एक जले हुए दीए के निकट आ सकता है । महावीर या बुद्ध या प्ण का मेरे लिए इससे ज्यादा कोई प्रयोजन नहीं कि वे जले हुए दीए है । उनका सयाल, उनके बलते हुए दीए की लपट एक बार भी हमारी आंखो मे पहुँच जाय तो हम फिर वही आदमी नहीं रह सकते जो कल थे। हमारी सम्भावनाओ के नए गवाक्ष खुल जात है, ऐसे अनेक द्वार खुल जाते है जिनका हमे पता तक न था। और तव उनको प्यास भी जग जाती है जो हम हो सकते है। यह प्यास जग जाय तो कोई भी वहाना बनता हो, इससे कोई प्रयोजन नहीं । ___तो मैं महावीर को भी, क्राइस्ट को भी वहाना बनाऊँगा, कृष्ण, बुद्ध और लाओत्से को भी। फिर हममे तरह-तरह के लोग है, और कई बार ऐसा होता है कि जिसे लाओत्से मे ज्योति दिख सकती है, उसे बुद्ध मे न दिखे, और यह भी हो सकता है कि जिसे महावीर में ज्योति दिख सकती है, उसे लाओत्से मे न दिखे। एक बार अपनी ही ज्योति दिख जाय तो लाओत्से और बुद्ध मे ही नहीं, साधारण-से-माधारण मनुप्यो मे भी वह ज्योति दिखने लगती है। पशु-पक्षी ही नही, पत्थर भी ज्योतिर्मय हो जाते है। लेकिन, जव तक स्वय मे यह ज्योति नही दिखती तव तक जरूरी नही कि सभी लोगो को महावीर मे ज्योति दिखे। इसके कारण है। व्यक्ति-व्यक्ति के देखने के ढग मे भेद है, व्यक्ति-व्यक्ति की ग्राहकता मे भेद है और व्यक्ति-व्यक्ति के रुझान और रुचि मे भेद है। जरूरी नही कि एक सुन्दर युवती सभी को सुन्दर मालूम पडे । मजनू की आँखो ने लैला के सौन्दर्य को जन्म दिया था यानी लैला होने के लिए मजनू की आँखे चाहिए। एक-एक व्यक्ति मे बुनियादी भेद है। इसलिए दुनिया मे इतने तीर्थकर, इतने अवतार, इतने गुरु हुए है। हो सकता है बुद्ध भार महावीर जैसे व्यक्ति एक ही जगह में एक ही दिन ठहरे और गुजरे हो, एक ही प्रदेश मे वर्प-वर्ष घूमे हो। फिर भी, गाँव मे किसी ने वृद्ध को देखा हो, किसी ने महावीर को और किमी ने इनमे किसी को भी नही ।
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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