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महावीर : परिचय और वाणी । महावीर ने चेतना को समय और ध्यान को सामायिक कहा है। अगर चेतना
की गति समय मे है तो इस गति के ठहर जाने का नाम सामायिक है। शरीर की सारी गति के ठहर जाने का नाम आसन और चित्त की सारी गति के ठहर जाने का नाम ध्यान है।
समय के विना चेतना का कोई अस्तित्व अनुभव मे नही आ सकता। समय का जो बोध है वह चेतना का अनिवार्य अग है। इस बात में और भी बातें अन्तनिहित है। जगत् मे सभी चीजे क्षणभंगुर हैं। आज है, कल न होगी। इस जगत् की लम्बी धारा मे समय ही एक ऐसी चीज है जो सदा है, जो नही बदलता और जिमके भीतर सब बदलाहट होती है। अगर समय न हो तो बच्चा वच्चा रह जायगा, कली कली रह जायगी। क्योकि परिवर्तन की सारी सम्भावनाएं समय मे है । जगत् मे ममी चीजे समय के बाहर है और परिवर्तनशील है, लेकिन समय 'समय' के बाहर है और परिवर्तनशील नही है। अकेला समय ही शाश्वत सत्य है जो सदा था, सदा होगा। महावीर आत्मा को समय का नाम इसलिए भी देना चाहते है कि वही तत्त्व शाश्वत, सनातन, अनादि, अनन्त है । साधारणत हम समय के तीन विभाग करते है . अतीत, वर्तमान और भविष्य । लेकिन यह विभाजन बिलकुल गलत है। अतीत सिर्फ स्मृति में है, और कही नही, भविष्य केवल कल्पना मे है, अन्यत्र नही। है तो सिर्फ वर्तमान । इसलिए समय का एक ही अर्थ हो सकता हैं-वर्तमान । जो है वही समय है । क्षण का अन्तिम हिस्सा जो हमारे हाथ मे है, महावीर उसे ही समय कहते है । 'समय' एक विभाजन है वर्तमान क्षण का जो हमारे हाथ में होता है । जैसे अणु-परमाणु दिखाई नहीं पडते, वैसे ही क्षण का वह हिस्सा भी हमारे बोघ मे नही आ पाता। जव वह हमारे वोध मे आता है तब तक वह जा चुका होता है। यानी, हमारे होश से मरने मे भी इतना समय लग जाता है कि समय जा चुका होता है। जिस दिन आप इतने शान्त हो जायँ कि वर्तमान आपकी पकड, मे आ जाय, उस - दिन आप सामायिक मे प्रवेश कर गए। चित्त इतना शान्त और निर्मल चाहिए कि वर्तमान का जो कण है अत्यल्प, वह भी झलक जाय। यदि वह झलक जाय तो समझना चाहिए कि हम सामायिक को उपलब्ध हुए-यानी हम समय के अनुभव को उपलव्ध हुए, हमने समय को जाना, देखा और अनुभव किया। जब हम कहते है कि आठ बजा तब उतनी ही देर मे घडी की सुई कुछ आगे जा चुकी होती है। वह कण-भर तो अवश्य सरक जाती है, आगे चली जाती है। इसका अर्थ यह हुआ कि जो कुछ कहा जाता है वह, कहते-कहते, अतीत का अग बन जाता है, हम जव भी पकड पाते है, अतीत को ही पकड पाते है। वर्तमान हमारे हाथ से चूक जाता है। हम इतने व्यस्त और शान्त है कि उस छोटे-से क्षण की हमारे मन पर कोई छाप नही वन पाती। हम समय से निरन्तर चूकते चले जाते हैं, इस कारण अस्तित्व से परिचित नहीं हो