________________
७०
महावीर : परिचय और वाणी रहे कि शरीर भी साधना मे अनिवार्य की है। जिस प्रकार पगुली मे बुद्धि न होने मे यह घटना मुश्किल हो गई है, उसी प्रकार देवताओ में गरीर न होने से मुस्किल हो गई है। पशुओ मे कमी बुद्धि विकनित हो माती है, मगर देवताजो को कनी गरीर मिले, इसकी सम्भावना नहीं है। मुक्ति के लिए पशुओं को मनुष्य तक माना पडता है और देवतामो को पुन गनुप्य तक लोटना पना।
हो सकता है कि मेरे कहने से आपको ऐना नी लगे कि महावीर या तादात्म्य जव जड के साथ है, वृक्ष के साथ है तो मनुष्यो के गाय नही है। और आप ऐसा भी सोच सकते है कि जब तादात्म्य होता है तब सबके साथ होता है, अलग-अलग नहीं। मेरा कहना है कि जब तादात्म्य पूर्ण होता है तभी वह सबके साथ होता है। ऐसी अवस्था मोक्ष में ही होती है। लेकिन महावीर तो उन विभूतियो में हैं जो परिपूर्ण मोक्ष पाने के पहले ही वापस लौट आये है। पूर्ण तादात्म्य होता तो महावीर नही रह जाते । जो मुक्त हो जाता है वह परमात्मा का हिल्ला हो जाता है और परमात्मा कोई सदेश पहुंचाने मही माता । सदेन पहुंचाने के लिए महावीर लौट आते हैं वापस । ज्ञान पूरा हो गया है, लेकिन अभी उब नहीं गए है नागर मे । इत्त हालत मे तादात्म्य सवसे नहीं होता। वह एक विशिष्ट दिशा में एक साथ एक बार होगा। दूसरी दिशा में दूसरी बार होगा। मोक्ष में सबके साथ युगपत् होगा। मोक्ष होते ही किसी व्यक्ति का कोई व्यक्तित्व नहीं रह जाता। गगा गिर जाती है सागर मे । फिर भी उमका कण-कण मोजूद है सागर मे। वह सो गई है मागर मे, मिट नही गई। जो था वह अब भी है, केरल सीमा नही रह गई। हां, कुछ ऐसी विधियां हैं जिनके सहारे हम चाहे तो सागर-तट पर गगा को पुकारें और उसके वे अणु जो अनन्त सागर मे सो गए हैं, उस तट पर इकट्ठे हो जायें । वे सब सागर मे मौजूद हैं । इसी तरह चेतना के महासागर मे महावीर-जैसा व्यक्ति सो गया है । लेकिन उनके अणु आपको उत्तर दे सकते है। जरूरत है कि आप उन्हे अनन्त के किनारे खडे होकर पुकारें, उनके द्वारा छोड़े गए सकेतो का उपयोग करें। जो लोग खो जाते है अनन्त में, वे ही उपाय भी छोड जाते है पीछे। यह भी सच है कि सभी नही छोडते। यह उनकी मर्जी पर निर्भर है कि वे छोडे या न छोडें। महावीर उनमे है जो निश्चित ही छोड गए है। उस उपाय से ही उनसे सम्बन्ध स्थापित हो सकता है। महावीर का कोई व्यक्तित्व नही रहा लेकिन उत्तर आ जाता है उस अनन्त से । ब्लेवटस्की ने करीव-करीव सभी शिक्षको से सम्बन्ध स्थापित करने की कोशिश की थी। उनमे महावीर भी एक है । लेवटस्की थियोसॉफिकल सोसायटी की जन्मदादी है। उसके साथ अल्काट और एनी बेसेट ने भी सम्बन्ध स्थापित किए थे। लेकिन वे सब मर चुके हैं। अब कोई भी ऐसा नही जो पुराने शिक्षको से सम्बन्ध स्थापित कर सके। मै चाहता हूँ कि इधर कुछ लोग उत्सुक हो तो बरावर इस विधि पर काम करवाया जाय। इसमे कोई कठिनाई नही है।