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________________ महावीर परिचय और वाणी मेरा भी विचार है पि वस्त्र बाधा बनता है और प्रत्येक वस्त्र अलग तरह की बाधा और सुविधा उपस्थित करता है। रेशमी वस्म से कामात्तेजना बढती है । वह स्त्री जिमने रेशमी वस्त्र पहन रखा है, काम को आप उत्तेजित करती है। सूती या खादी वन से ऐसा ही होता। इस सम्बन्ध म ऊनी वस्त्र वहुत अदभुत हैं । आपन देखा होगा कि सूफा पनीर ऊनी कपड ही पहनते हैं। सूफ का मतलब ही ऊन होता है। स्नी वस्त्र भित भिन्न प्रकार की रहा मे सुरक्षित रहता है, शरीर की गर्मी को वाहर जान नहीं देता। उसमे गर्मी जसी काइ चीज नहा होती। सिफ भीतर रुकी हुई गर्मी ऊनी वस्ल का गम रगती है। अनुभव बतलाता है कि न केवल गर्मी वो वल्कि और तरह के सक्ष्म अनुभवा को भी ऊनी वस्न रोक्ने म सहयोगी होता है । जिहें किसी गुह्य (एमाटेरिव)विनान में काम करना हो उन लिए ऊनी बम्ब बहुत उपयोगी है। तो ध्यान रहे कि महावीर की नग्नता उनके ज्ञान का हिस्सा है चरित्र का नही। इसलिए जा लाग उम चरिम का हिस्सा ममपयर नग्न पड़े हो जाते हैं वे बिरल पागर हैं। यदि नग्नावस्था में महावीर के शरीर मे कुछ तर, पदा होती थी तो हवाएँ उन लहरा को एकर यात्रा कर जाती यो । कपडा मे वे लहरे भीतर रह जातो । सूफी जान बूझकर ऊनी वस्त्र पहनते हैं महावीर को भी नग्नता के महत्त्व की जानकारी थी मार उस युग की चरिन व्यवस्था नग्न सडे होने की सुविधा दती थी। हर युग म मनावीर नग्न खड़े नहीं हो सकते। बम्बई और न्यूयारु-जस नगरा मे बाज नग्न यदा होना मुश्किल है। नग्न आदमी को सड़क पर निकलने के लिए गवनर की अनुमति चाहिए। यूयाक म नग्न यक्ति विलकुल पकड लिया जायगा, बद कर दिया जायगा। मैंने कहा कि मरावीर पिछजम म मिह थे और उह सत्य को जो अनुभूति हुई वह भी पिछले जम मे ही हुई। तो क्या पशु-यानि म भी मुक्त हुआ जा सकता है ? मैं इसकी सम्भावना का निषेध नहीं करता। हाँ आज तक ऐसा नहीं हुआ वि पोई पा योनि म जाम पर मुक्त हो जाय । अत महावीर का स य वा जा अनुभव हुआ होगा वह मनुष्य जम मे ही हुआ होगा। विसी दिन व मनुष्ययानि बहुत विवसित गे जायगी और इसमे मुक्त हाना सरर हा जायगा तब नीचे के योनिया म नी मुक्त की एष दो घटनाएं घटन लगेंगी। मगर व तव मनुष्ययोनि या छोडकर विसी दुरारी योनि में ऐसी घटना ही घटी हैं। इसलिए मैं जो पिछले जम'पा प्रयोग किया, उगवा मतरवठीर पिछल जम रहा है। देवयानि मनी मुपित यी घटना नहीं हो सकती । पशुपानि म कमा हो सरतो है निषेध नही है, दिन दवयानि में इसकी सम्भावना नहा। निषेध या पारण है मि देवयोनि म ए तो शरीर नहा है और दूसरे बहू मनोयोनि है। और स्मरण
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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