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महावीर . परिचय और वाणी
उन्होने उन चट्टान-जैसी चीजो से तादात्म्य स्थापित कर लिया था जिन्हें नील ठोके जाने का अनुभव नहीं हो सकता । पत्थर में कीलें ठोको तो बेचारे पत्थर को उनका क्या अनुभव होगा? अगर कोई उनका हाथ भी काट लेता तो उन्हें इनका अनुभव न होता । हम जानते है कि लोग अगारो पर कूद सकते हैं। तादात्म्य किससे है, इस पर सव वात निर्भर करती है। अगर किसी ने किसी देवता मे तादात्म्य किया है तो वह अंगारो पर कद जायगा, जलेगा नहीं क्योंकि देवता नही जल मकता । महावीर अभिव्यक्ति का जो उपाय खोज रहे हैं, वह है भूत, जड़ एव मूक जगत् मे तरगे पहंचाने का उपाय । अव तो तरगो को वैनानिक ढग से भी अनुभव किया जा सकता है।
तीर्थो और मन्दिरो का महत्त्व भी इन्ही तरगो के कारण है। मगर महावीर. जैसा कोई व्यक्ति कुछ दिन इस कमरे मे रह जाय तो इस कमरे से उसका तादात्म्य हो जाता है और इसके कण-कण मे उसकी तरणे अकित हो जाती है। तीर्थ बोर मन्दिर साधको के व्यक्तित्व की तरगो से आप्लावित रहते हैं । इनलिए प्राचीन तीर्थो और मन्दिरो मे साधना करना सार्थक हो सकता है। यदि इस कमरे में किसी ने आत्महत्या कर ली हो तो आत्महत्या के क्षण मे हुए तीन तरगो के विस्फोट की प्रतिध्वनियाँ सैकडो वर्षों तक इस कमरे की दीवारो पर अकित रहती है। हो सकता है कि इसमे सोनेवाला व्यक्ति कोई रात आत्महत्या करने का सपना देखे । वह सपना केवल कमरे की प्रतिध्वनियो का उसके चित्त पर प्रभाव होगा । और यह भी हो सकता है कि इस कमरे में रहते हुए वह किसी दिन आत्महत्या कर गुजरे। बोधिवृक्ष का महत्त्व इसी कारण है कि उसके नीचे बुद्ध के निर्माण की घटना-घटी और उसके कण-कण मे उनकी तरगो का अकन है। आज भी कोई रहस्यदर्गी चाहे तो उस वृक्ष के नीचे बैठकर उन तरगो को वापस बुला सकता है। तीर्थ इन्ही तरंगो के कारण महत्त्वपूर्ण हो जाते है । सम्भेद शिखर, गिरनार, कादा, काशी, जेरुसलम--सभी एक दिन जीवित तीर्थ थे। उनकी तरगे धीरे-धीरे नष्ट हो गई है। इस समय पृथ्वी पर कोई भी जीवित तीर्थ नहीं है, सव तीर्थ मर गए है।
जड से जड वस्तु पर भी तरगो का क्रान्तिकारी प्रभाव पड़ता है। यहाँ तक कि पदार्थ का अन्तिम अणु भी हमारे निरीक्षण से प्रभावित होता है। यदि अणुओ और परमाणुओ को तोड़कर हम इलेक्ट्रोन (विद्युदणु) की दुनिया में पहुंचे तो वहाँ जो अनुभव होगा वह बहुत घबडानेवाला होगा। वह अनभव यह होगा कि अनिरीक्षित विद्युदणुओ का व्यवहार वैसा नहीं होता जैसा निरीक्षित विद्युदणुओ का होता है । जब तक उसे कोई नही देखता तब तक वह एक ढग से गति करता है, किन्तु खुर्दवीन से देखे जाने पर वह डगमगा जाता है और अपनी गति वदल देता है। इन परमाणुओ और विद्युदणुओ तक भी महावीर ने खवर पहुँचाने की कोशिश