________________ महायोर परिचय और घाणी 329 हैं तब मुन्न पीटा होती है, शरीर को भूख लगती है तब मुये भी भूम रगती है, गरार पोथकान हाती है तो मैं थर जाता है। गरीर और मर वीच म तादात्म्य है हम जुड़े है सयुक्त है। हम यह भूर ही गए हैं कि म गरीर नहा, चेतना हैं आत्मा है। काया मग पा अय भी आग पेवर इनना ही रह गया है कि अपनी पाया पर प्ट जाए तो उस सह लेना। यह काया अपनी है, यह बात नही छटती / मगधीर का यह मतरम नहीं है कि वाया ना उत्सग करना क्यापि जा अपनी ही उस तुम उत्मग करोगे ही से अपने को उत्मग किया जा सकता है, रमिन ना मरा नहीं है, उम में उत्मग करेंगा ही पैस? महावीर पत्त हकाया तुम्हारी नहीं है यर जााना कायोत्सग है। मैं वाया चादूगा, एगा भाव वाया मग नहीं है यापि र ता इस उत्सग म भी ममत्व यो धारणा मीद है / आत्महत्या करन वाला भी पाया पो मिटा डालता है सचिन उसका त्याग कायोत्मग नहीं है। शहीदा या मूरी पर हा मी मायात्मग नहीं है, क्यापि यह मानता है कि शरीर मेरा है। एफ तपस्वी बापरेगरीर को नहा मताता,अपने शरीर का ही सता देता है। तीन वह भो मागताह वि शरीर भरा है। महावीर बहते हैं कि यह जानना कि शरीर मरा गे है, पापात्सग ह / रेविा यह वाघ बहुत पठिन है / इसीरिए आस्तिमा ने एक पाप किराहा घे यहत हैं कि गरीर मरा नहा, परमात्मा का है। महावीर के लिए तो वह भा उपाय नहीं है वपापि ध परमात्मा का नहीं मानत / तथाकथित आस्तिर व चार सान है। व कहत है-रार मरा नहा है, परमात्मा का है आर परमात्मा मग / गाार म पिरपर सर अपना हा हा जाता है। नापीर क लिए परमामा मानहा हैं। यस्तुत महागीर की धारणा बढ़त पर मुत है। व बहन है कि तुम अपा हा मगर गरीर पा-यह परमात्मा या नहीं हो सकता। परीर भरीरा ही है। प्र यम्नु अपगी है पो स्वभाव की है, किसी और की नहा हो साती। मार रियन पूर है इन जगत् म परमात्मा को भी मार पिया हो ताठ है / म तप्प सी तरह गमा रें। __जार प्रतिपर मारले गर है। एरण पर जा सॉस आपसी या व दूगर माक्षागा और गाहा जाती | ETर पहल वर आपर पटासा पी पी! र म-मिग बाप अपना रहते हैं-मिट्टी व आगिनत कण हैं / सभा भगा और गेर महाग | Rifrat या म सगे भी पिगी पत्र म / न नाम तिनी यात्राएं भी है। नगर पाम पूछि तुम शिर हा सायगे हम अपन है हम यात्रा परा है तुम मगन हा जिना हम गुजरी है / मा TIPaa पाना मग है। तब म नम्हार मग मात