SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 292
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २९६ महावीर : परिचय और वाणी सर्वप्रथम मैं पहले व्यक्ति का नाम लंगा, फिर दूसरे का, फिर तीमरे का, फिर चौथे का। इस प्रकार मेरे कथन मे कम होगा, लेकिन जो लोग मेरे मामने बैठे थे, उनके बैठने मे क्रम न था। वे एक साथ मौजूद थे। उनका अन्तित्व झट्ठा था, एक साथ था । मापा उनमे क्रम बना देगी। कोई आगे हो जाएगा और कोई पीछे । लेकिन अस्तित्व मे कोई आगे-पीछे नहीं होता। (३) वाह्य तप मे महावीर ने अनशन को पहला स्थान दिया है। अनशन के सम्बन्ध मे जो भी समझा जाता है वह गलत है । उसमे छिपे हुए मूत्र पर ही आज मैं विचार करूँगा । इन सूत्र को समझ लेने पर आपको एक नई दिया का बोध होगा। मनुष्य के शरीर मे दोहरे यन हे ताकि सक्ट के किसी क्षण में एक यत्र काम न करे तो दूसरा उपयोगी हो । आप भोजन करते है, गरीर उस भोजन को पचाता है, खून और हड्डियाँ बनाता है। गरीर के साधारण यत्रो से यह काम हो जाता है । लेकिन कभी कोई जगल मे भटक जाता है, नदी में बह जाता है और कई दिनो तक किनारा नहीं पाता। ऐसी अवस्था मे जब उसे भोजन नही मिलता तव गरीर के सकटकालीन यत्र सक्रिय हो जाते है। शरीर को भोजन की आवश्यकता बनी ही रहती है, उसे ईधन की जरूरत होती ही है । जब गरीर को भोजन नहीं मिलता तो वह उस ईधन को ही उपयोग ने लाने लगता है जो उसके भीतर पहले से इकट्ठा है। वह अपने भीतर की चर्वी को ही भोजन बनाना शुरू कर देता है। इसलिए उपवास मे एक पौड वजन रोज गिरता चला जाता है। फिर भी लगभग ९० दिन तक साधारण स्वस्थ आदमी उपवाम से नहीं मरता । गरीर के पास इतना संगृहीत तत्त्व मौजूद होता है कि कम-से-कम तीन महीने तक वह अपने को विना भोजन के जिन्दा रख सकता है। शरीर की ये दो व्यवस्थाएं है। इनमे एक तो मामान्य है और दूसरी केवल सकट की घडी के लिए बनी है। (४-५) अनशन की प्रक्रिया का राज यह है कि जब शरीर एक व्यवस्था से दूसरी व्यवस्था पर सक्रमण करता है तव वीच मे कुछ क्षण के लिए आप वहाँ पहुँच जाते हैं जहाँ शरीर नही होता। यही अनशन का सीक्रेट है। जब भी आप एक चीज ते दूसरी पर बदलाहट करते है, एक सीढी से दूसरी सीढ़ी पर जाते है, तब एक ऐसा क्षण होता है जब आप किसी भी सीढी पर नहीं होते। जव आप एक स्थिति से दूसरी स्थिति पर छलाँग लगाते है तव बीच मे एक गैप-एक अन्तराल हो जाता है। उस अन्तराल मे आप किसी भी स्थिति मे नही होते, फिर भी होते अवश्य हैं। शरीर की एक व्यवस्था है सामान्य भोजन की। अगर यह व्यवस्था बन्द कर दी जाए तो अचानक आपको दूसरी व्यवस्था मे रूपान्तरित होना पड़ेगा। इस बीच कुछ ऐसे क्षण होगे जव आप आत्म-स्थिति मे होगे । उन्ही क्षणो को पकड़ना अनशन
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy