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महावीर परिचय और वाणी
२८५ ही टूटता है । गरीर का सतानवारे तपस्नी की चेतना गरीर द्रित ही होती है उमे गरीर कभी नहीं भूलता। ध्यान रखें, भागी और तथाकथित तपस्वी क वीच शगर के मम्ब प म बाई मतर नहीं पड़ता।
(६) जा तप गरीर के माध्यम स जी रहा है वह माग का ही विकृत रूप है। जो तप शरीर-केद्रित है वह भोग का ही दूसरा नाम है, माग की शरीर के साथ बदला लेन की बाकाक्षा है । इम टोव से समझकर ही हम तप की दिशा म बाँसें उठा सक्त हैं।
माज ये तथाकथित तपम्बी आत्म हिंमक हैं। अपने वो ना जितना सता सक्ता है, वह उतना वा तपस्वी पहा जाता है। लेपित मताने या, आत्मपीडन का कोई उमप तप से नहीं है । ध्यान रखें जो अपने को सता सकता है यह दूसरे को सतान से बच नहीं सकता। जो अपन को तप मसता सकता है. यह पिसी को भी सता सकता है। निश्चित ही भोगी का मताने का ढग सीधा होता है त्यागी का पराश । अगर आपने अच्छे कपड़े पहन रखे हैं और आपका त्यागी भभूत लगाए बैठा है ता यह आपये कपडा को एसे दरोगा जसे वह कोई दुरमन को देखता हो। उसकी आँखा म निदा होगी, आप कीडे मनोहे मालूम पड़ेंगे।
(७) तथाकथित तपस्वी आपको न भेजने पी याजना म स्गे है। उनमा चित्त जापके ये सारे इतजाम कर रहा है। वे यह सोच नही सक्त कि आपया मी तुम मिल । और बड़े गा का बात है कि उनवे स्वग पा सुप आपो ही सुसा का विनीण रूप पिसी विल्पना स नगरता है यह सारी विचार धारा सच म जो तपस्वी है वह विमी के लिए दुग की याई बात साच मी हा रायता । लेकिन तथापित तपम्बिया न नव को जा विवचना की है और अपन गास्था म उमया जो चित्रण किया है वह उनकी रग्ण कल्पना गक्ति पा ही परिचय दता है।
घ्यातव्य है कि तपस्वी आप मोगा वो बडी निता बरत है और उम निना म बटन रस रेत हैं। यह एक रोचर तथ्य है वि वात्स्याया। अपने याममून म स्था नै अगा पा वसा गुर सरस चित्रण नहीं दिया है जमा तपम्विया न म्नी पे अगा यो निता करन के लिए जपन मात्रा म पिया + । यत भी यम मजे की यात नी है रिभागिया के नामपाम Tग्न अप्सराएं आपर नहीं चसा, सिफ तपविया मसपास आपर नाचनी हा तपस्या सोचते है वि व नरा तप भक परन के लिए पाती हैं। रविन मनापिसान पा पता है रिइम जगत म अगरा पाई इतजाम नता है तपम्पिया यो भष्ट परन ये रिए। अम्निय तपल्विया यो प्रष्ट पराा पपा पारगा? चारा नपराएं शात प म ग्या एप ही पपा करेंगा-परिचया या पट मरने पा? उना लिए और साई याम
होगा?
(८) सप ता यह है रिये (अप्पराएं) पिता ग म ही डारा, यति