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महावीर परिचय और वाणी तो वाटर सर म्वाद बस्वाद हो पाते हैं। इद्रिया को भीतर की तरफ मोडना मयम की प्रमिया है।
कम माग | कभी छोटा सा प्रयाग परें तो बात समझ म ला जायगी । __ घर म बठ हा तो गुनना शुरु करें बाहर की आवाजा का। जागर होकर मुनें सिवान क्या-क्या मुन रहे ह? सारी आवास के प्रति पूरी तरह जाग जाय । जन मारी आवास के प्रति पूरी तरह जागे हा तो एक बात यह भी सयाल करें कि काइ एसी भी नावाज है जो बाहर से नहीं या रही है। आप एवं सन्नाट गो अलग ही सुनना शुरु कर देंगे। बाजार को भीड म भी एक आवाज सुनाइ पडेगी जो आपने भीतर पूरे समय गजती रहती है।
(७) इसकी प्रतीति जमे ही होगी धसे ही बाहर की आवाम रसपूण मालम पडने लगेंगी और मीतर या सगीत आपके रस का पकडना गुरू पर देगा । जसे जैस हम भीतर जाते हैं, बाहर और भीतर का पामरा गिरता चला जाता है। एक घडी आती है जब न कुछ बाहर रह जाता है और 7 कुछ भीतर। जिस दिन यह घडी जाती है जब जा जाहर है वही भीतर बार जो भीतर है वही बाहर उस दिन आप नयम का उपट पहा गए, उस इपयालिनियम यो सिम सब सम हो जाता है, जिसम राय ठहर जाता है, मौन हो पाता है, जिसम कोइ भाग दौड नहा रोती, काई कम्पा हा होता।
(८) पिमी जी इन्द्रिय स र रें और भीतर की ओर बढत चले जायें। पौरन ही यह इद्रिय आपको भीनर से जाउने का कारण वा जायगी। मांस स देगना शुरु करें फिर स वर पर रें। बाहर य दश्य दसें, दसत रहें और पारधीरे अतर काय ये प्रति जागें। बहुत शीत आपना बाहर के दो दृश्या के बीच म नीवर पे दश्या पी पर जानी गुम हो जायेगी। कभी भीतर एसा प्रमाण मर जाय, जो बाहर गूय भी देन म अगमय होगा, यमी भीतर ऐम रग पर पायगे जो इनुपा म भी नही हैं।
(९) प्रत्पेर इद्रिय भीतर र जान पा द्वार वन सरती है। स्पा बहुत पिया है जापन । तो वट जायें, बारा वायद कर लें और सा पर ध्यान पर । मर मा गडे हा जान दें चारा आर आर फिर साजना गुर पर पि क्या याद ऐसा ना पाजावाहर से 7 आया हो और पोडे ही श्रम और सपत्प स आपसा ऐग सा यो जनुभूति हा लगगी जो बाहर स नहीं आई है। जिग दिन नापरा उस पापा याप हागा, पानि समग लागिए पि आपो नौतर मा " पायिा। मशिन चारर ये स्पा स्यय हा जायेगे । जापसी जान्द्रिय सवन ज्या तीन है उसे आप दुरमा बना रत हैं। अगर भापमै लिए रायर मार पिप पामर "मा नहा है तो आपरी जो इद्रिय सर्वाधिप गप्रिय है यी सापपी मित्र