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महावीर : परिचय और वाणी
और कभी मन्दिर जाकर । मनोवैज्ञानिक कहते है कि जगत् में जितना बुरे आदमी को नाम मिलता है, अगर उतना अच्छे आदमी को भी नाम मिलने लगे तो कोई आदमी बुरा न होगा | बुरा आदमी भी अस्मिता की, अहकार की सोज मे ही बुरा होता है ।
( २३ ) सयमी का अर्थ है - जो द्वन्द्व मे कुछ भी नही करता, जो कहता है। न दोस्ती करेंगे, न दुश्मनी करेंगे महावीर किसी से मित्रता नही करते, क्योंकि वे जानते है कि मित्रता एक अति है । वे किसी से शत्रुता भी नही करते, क्योकि शत्रुता भी अति है । लेकिन हम ? हम उलटा सोचते हैं । हम सोचते है कि अगर दुनिया से शत्रुता मिटानी हो तो सबसे मित्रता करनी चाहिए। हम गलती में हैं । मित्रता एक अति है, उसमे शत्रुता पैदा होती है ।
(२४) जब महावीर कहते है कि सबमे मेरी मैत्री है तो इसका मतलब है कि मेरी किसी से मित्रता नही, शत्रुता नही । कोई सम्बन्ध नहीं, एक निराकार भाव बचा है, एक सम्वन्धित स्थिति बची है । कोई पक्ष वचा नही है, एक तदस्य दशा वची है । जब कहते है कि सबसे मेरी मैत्री है तब हम इस मूल मे न पडे कि वह हमारीजैसी मित्रता है । हमारी मित्रता शत्रुता के विना हो नही सकती और न हमाराप्रेम घृणा के विना हो सकता है महावीर - जैसे लोगो को समझने में सबसे बडी कठिनाई यह है कि वे भी उन्ही शब्दो का प्रयोग करते है जिनका प्रयोग हम साधारण जन करते है । लेकिन वे भिन्न अर्थो मे उन शब्दो का प्रयोग करते हैं । उनका भाव हमारे भाव से मेल नही खाता ।
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