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________________ महावीर : परिचय और वाणी पर हमला होता है तब उसे लगता है कि हत्या हो रही है। वाकी समय हत्या नहीं होती। अगर जगल मे जाकर आप शेर का गिकार करते है तो यह आपके लिए खेल है और जब गेर आप का गिकार करता है तब आप उमे हत्या कहते हैं । आपके लिए वह जगली जानवर है और आप बहुत सन्य जानवर है ! और मजा यह कि शेर आपको तब तक नही मारेगा जब तक उसे भूख न लगी हो। (३) गैर-अनिवार्य हिंसा कोई जानवर नहीं करता, सिवा आदमी को छोड कर। लेकिन हमारी हिंसा हमे हिंसा मालूम नही पडती। जो जितना हमारे निक्ट पड़ता है, उसकी हत्या हमे उतनी ही ज्यादा महसूस होती है। मुसलमान मर रहा हो तो जैनी को तकलीफ नहीं होती । जैनी मर रहा हो तो हिन्दू को तकलीफ नहीं होती ! अपने परिवार का कोई मर रहा हो तो तकलीफ होती है, दूसरे परिवार का कोई मर रहा हो तो सहानुभूति दिखाई जाती है । (४) 'मैं' केन्द्र है सारे जगत् का । अपने को बचाने के लिए मैं सारे जगत् को दाँव पर लगा सकता हूँ। यही हिंसा है, यही हत्या है । महावीर जिस व्यापक परिप्रेक्ष्य मे देखते है, उसमे वह हत्या दिखाई नही पडती जो आपको हत्या दिखाई पड़ गई है। इसलिए महावीर के लिए हत्या का प्रश्न बहुत जटिल है। आप किसको वलात्कार कहते है ? पृथ्वी पर सौ मे ९९ मौको पर बलात्कार ही हो रहा है, लेकिन वलात्कार का क्या मतलब ? पति करता है तो वलात्कार नहीं होता, लेकिन अगर पत्नी की इच्छा न हो तो पति उसके साथ जो भी करता हे वह वलात्कार है। दूसरे की इच्छा के विना कुछ करना ही बलात्कार है । हम सब दूसरे को इच्छा के विना बहुत कुछ कर रहे हैं । सच तो यह है कि दूसरे की इच्छा को तोडने की ही चेप्टा मे सारा मजा है । जबर्दस्ती से अहकार की जो तृप्ति होती है वह सहज मे कहाँ होती है ! अगर महावीर से पूछते तो वे कहते कि जहाँ-जहाँ अहकार चेप्टा करता है, वहाँ-वहाँ बलात्कार हो जाता है। जब कोई व्यक्ति किसी स्त्री के माथ रास्ते मे बलात्कार करता है तब सदा वलात्कार करनेवाला ही हमे जिम्मेवार मालूम पडता है । लेकिन हम भूल जाते है कि स्त्री बलात्कार करवाने के लिए कितनी चेप्टाएँ करती है । अगर पुरुष को इसमे रस माता है कि वह स्त्री को जीत ले तो स्त्री को भी इसमे रस आता है कि वह किसी को इस हालत मे ला दे ! (५) हमे खयाल नही आता कि इस जगत् मे किसी को जिम्मेवार ठहराना इतना आसान नही । दूसरा भी जिम्मेवार हो सकता है और दूसरे की जिम्मेवारी गहरी और सूक्ष्म भी हो सकती है। महावीर जव देखेगे तव पूरा देखेगे और उस पूरे देख्ने मे और हमारे देखने मे फर्क पडेगा। महावीर की जो दृष्टि है वह टोटल है, पूर्ण है।
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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