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महावीर : परिचय और वाणी चाहता है उसको कोई न भी दे तो भी वह ले लेगा--यह भी मैं आपसे कह देना चाहता हूँ।
(१५) जितने दुख आपको मिल रहे है, उनमे से ९९ प्रतिगत आपके आविप्रकार है । जरा सोचे, किस-किस तरह आप आविष्कार करते है दुख का ! असल मे विना दुखी हुए आप रह नही सकते । दुख भी जीने के लिए काफी वहाना है। देखते है न कि दुखी लोग कितने रस से जीते है और अपने दुख की कथा कितने रस से कहते है और उसे किस प्रकार वढा-चढ़ाकर सुनाते हैं ! यदि मुई लग जाय तो तलवार से कम नही लगती वह उन्हे !
(१६) वे अपनी सारी इन्द्रियो को चारो तरफ सजग रखते है एक ही काम के लिए कि कही से दुख आ रहा हो तो चूक न जाएँ, उसे जल्दी से ले ले । कही अवसर न खो जाय ! यही दुख हमारे जीने की वजह है ।
तो महावीर की अहिंसा का अर्थ यह नहीं है कि दूसरे को दुख मत देना । महावीर तो कहते है कि दूसरे को न तो कोई दुख दे सकता है और न कोई सुख दे सकता है। महावीर की अहिंसा का यह भी अर्थ नहीं है कि दूसरे को मार मत डालना । महावीर भलीभॉति जानते है कि इस जगत मे कौन किसको मार सकता है ? मृत्यु असम्भव है।
(१७) लेकिन महावीर के पीछे चलनेवालो ने अत्यन्त साधारण परिभाषाओ का ढेर इकट्ठा कर लिया है । क्या अहिंसा का अर्थ यही है कि मुंह मे पट्टी बाँध ली जाय ? अहिसा का अर्थ यही है कि रात मे पानी न पिया जाय ? यह सव ठीक है; मुंह पर पट्टी बाँधने मे या पानी छानकर पीने मे कोई हर्ज नहीं है। लेकिन इस भ्रम मे न रहिए कि आप किसी को मार सकते है। किसी को दुख मत दीजिए, लेकिन इस भ्रम मे भी न रहिए कि आप किसी को दुख दे सकते है। मैं यह नही कहता कि आप जाएँ और मार-पीट करे (क्योकि मार तो कोई सकता नही) । मैं आप से यह नहीं कह रहा हूँ। महावीर की अहिमा का अर्थ यह नहीं है । महावीर के लिए अहिंसा वही अर्थ रखती है जो बद्ध के लिए तथाता रखती थी। तथाता का अर्थ है 'टोटल ऐक्सेप्टिविल्टिी ' ! जो जैसा है, वह वैसा ही हमे स्वीकार है। हम उसमे कुछ हेर-फेर नही करेगे । मान लीजिए कि एक चीटी चल रही है रास्ते पर । हम कौन है जो उसके रास्ते मे किसी तरह का हेर-फेर करने जाएँ ? शायद वह अपने बच्चो के लिए भोजन जुटाने मे लगी है। हो सकता है, योजनाओ का उसका निजी जगत् हो । महावीर कहते है कि मैं अपनी ओर से उसके वीच मे न आऊ । जरूरी नहीं है कि मै ही चीटी पर पैर रखू तो वह मरे । चीटी खुद मेरे पैर के नीचे आकर मर सकती है। यह चीटी जाने और उसकी योजना जाने । योजना छोटी नही है, यह जन्मो-जन्मो की है, कर्मों का विस्तार है। चीटी के अपने कर्मो और फलो