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महावीर : परिचय और वाणी
गच्छामि, तब वह पहला कदम उठाता है । जब कोई कहता है-अन्हिते गरणम् पवज्जामि, तब वह शरण जाने की अन्तिम स्थिति में है, वह अन्तिम कदम उठाता है। जव कोई कहता है कि गरण में आता है, तब वह बीच ने लीट भी सकता है। यह भी हो सकता है कि यह उनकी गना या प्रारम्न हो, याना पूरी न हो या उनके वीच मे व्यवधान हो जाय-याना के मन में ही कोई तर्क द्वारा समझाकर वापत लौटा दे, कारण कि तर्क गरण में जाने का निताल विरोधी है।
(३) महावीर का मूत्र है--अरिहत की गरण स्वीकार करता हूँ। उनने लीटना नही हो सकता। यह प्वाइंट ऑफ नो रिटर्न' है। यदि 'शरण में जाता है' कहें तो इसमे अभी काल का व्यवधान होगा, ममय लगेगा गरग तक पहुँचते-पहुंचते । नान जो कहता है कि गरण में जाता हूँ, वह हो सकता है कि कितने जन्मो के वाद गरण ने पहुँचे। अपनी-अपनी गति और अपनी-अपनी मति पर निर्भर होगा यह । लेक्नि 'स्वीकार करता हूँ' की खूबी यह है कि यह 'मडेन जम्प' है, नमन छलांग है। 'स्वीकार करता हूँ'--अर्थात् स्वय को तत्काल अस्वीकार करता हूँ क्योकि गरण स्वीकार करता हूँ। अगर आप अपने को स्वीकार करते है तो दारण को स्वीकार नहीं कर सकेगे। शरण की स्वीकृति अहकार की हत्या है। चेतना में धर्म का विकास अहंकार के विसर्जन से शुरू होता है।
कृष्ण के युग मे सत्य को उपलब्ध कर लेना जितना आसान था उतना महावीर के युग मे नही। हमारे युग मे सत्य को उपलब्ध कर लेना अत्यधिक कठिन है। नाज न तो सिद्ध कह सकता है कि मेरी शरण मे आ और न साधक कह सकता है कि मैं आपकी शरण मे आता हूँ। महावीर चुप रह गए। आज अगर साधक किसी सिद्ध की गरण जाए और सिद्ध मौन रहे तो साधक समझेगा कि अच्छा है, मौन सम्मति का लक्षण है। मतलब कि साधक की दृष्टि मे सिद्ध अहकारी है। आश्चर्य नही कि कुछ दिनो वाद साधक से सिद्ध को ही कहना पडे कि मैं आपकी गरण मे आता हूँ, मुझे स्वीकार कीजिए। गायद साधक तभी यह मानने को तैयार होगा कि यह आदमी ठीक है।
शरण की स्वीकृति का मूल्य क्या है, इमे हम दो-तीन दिशाओ से समझने की कोशिश करे।
(४) पहले तो शरीर के समर्पण को ही समझने की कोशिश करे। भारतीय योग मे गवासन का प्रयोग गरीर के पूर्ण समर्पण का प्रयोग है। शवासन का अर्थ है पूर्ण समर्पित गरीर की दशा, जव आदमी ने अपने शरीर को विलकुल छोड दिया हो, जब उसने अपने शरीर को पूरी तरह 'रिलक्स' कर दिया हो। यह बहुत ही अद्भुत वैज्ञानिक सत्यो से भरा हुआ प्रयोग है । वल्गेरियन डॉक्टर लोज़ानोव का कहना है कि
जब हम पृथ्वी के साथ समानान्तर लेट जाते है तब जगत् की शक्ति हममे सहज ही -प्रवेश कर जाती है। जब हम खड़े होते है तब शरीर ही खड़ा नहीं होता, भीतर