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महावीर परिचय और पाणी
२३७ उरती है चाह है, तब आदमी का वासना जोर चाह स मुक्त क्स पिया जा मक्ता है?
इस्चरवादी रिवात म रहता है। उमनो स्वीकार करना पटता है कि ईश्वर म वामना और चार है। और तव अनक अनगर यात उम स्वीकार करनी पड़ती हैं । उस मानना पड़ता है कि ब्रह्मान स्था को जम दिया और वह उसका पिता हो गया। फिर उसने अपनी बेटी को चाहा आर सम्भोग के लिए मातुर हो गया। परिणाम म्वरप यह अपनी बटी ये पीछे भागन रगा। बटी अपने पिता से बचने लिए गाय वन गई । वह वर हा गया। तब वटी उमसे वचन के लिए कुछ और हा गई तो वह भी कुछ और हा गया। बेटी जो जा हाता चली गई, वह उसी-उसी जाति का हाता चरा गया। अगर ब्रह्मा भी चाह म ऐसा माग रहा होता तो आपका सिनेमा परा म जाना बिलकुल ब्रह्मस्वरूप है, आप विरकुल ठीक चो जा रह है । स्त्री फिल्म अभिनत्री हो गई तो आप फिल्म-दराक हो गए। फिर सारा जगत वासना या फेराव हा गया।
महावीर ने इस धारणा का जड़ से काट दिया। वहान कहा कि अगर लोगा का भगवान् बनाना है तो भगवान की इस धारणा का अरग करो। उन्होंने कहा कि अगर पहरे भगवान् म भी चाह रख दाग तो फिर आदमी की चाह का य करने का पारण क्या बचेगा? जगत अनिर्मित है अनवना है। किसी ने बनाया नहीं है इस । विनान के लिए भी यही तकयुक्त मालम पडता है, क्यापि जगत में काइ चीज यसायी नहीं मालूम पढती और न कोई चीज नष्ट होती मालम पटती है-सिफ म्पातरित होता मारम पड़ती है। इसलिए महावीर ने पनाथ की जो परिमापा को है वह इस जगत् की सर्वाधिक वनानिक परिमापा है । उहान 'मटर' के लिए एक अभुत बार का प्रयोग किया है -'पुद्गल' । एमा दाल जगत की रिसा मी मापा म नहीं है । 'पुदगर या अय है--जो बनता मोर मिटता रहता है भार फिर मा है। जा प्रतिपर बन रहा है मिट रहा है और है नती की नाई । पदी भागी जा रही है, चली जा रही है, फिर भी है। 'पुदगल' या अय है 'बियमिंग', वह जा प्रतिपल जमल रहा है और प्रतिपल मर रहा है, फिर भी कभी न ता सिमित हाता है और न समाप्त हाता है। चरता रहता है, गत्यात्मक है।
(१५) मापार | पहा रि यह जगत् पुरगर है। शाम सनी चौ सदा मे हैं, य बन रही हैं मिट रही हैं, न कोई चीज यमी समाप्त हाती है और न निर्मित होती है। इसरिए तिमाता का प्रश्न नही उठना और न परमारमा म वासना पी पत्तना ही तपयुक्त है।