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महावीर : परिचय और वाणी
होता है, हार होती है । जन्म के दिन आकाक्षाएँ होती है, अभीप्साएँ होती है, दौडने का वल होता है, मृत्यु के दिन थका मन होता है, हार होती है, हम टूट गए होते है | लेकिन फिर भी ऐसा समझने की भूल न करे कि मरता हुआ आदमी परिग्रही हो जाता हो । मरता हुआ आदमी भी यही सोचता है कि काश, थोडा वक्त और होता तो दौड लेता और पहुँच जाता 1
जिसे सीखना है वह एक अनुभव से भी सीख सकता है और जिसे सीखना नही है वह अनन्त अनुभवो से भी नही सीख सकता । हम ऐसे ही लोग है जिन्होने सीखना बन्द कर दिया है। जिन्हे हम महावीर या कृष्ण या बुद्ध कहते हैं, वे ऐसे लोग थे जो जिन्दगी के अनुभव से सीखते है । हम ऐसे लोग है जो सीखते ही नही । हम सासारिक लोग है । ससार का मतलब होता है— चक्र । ससार एक चक्र है, जिस चक्र
हम एक ही बात दोहराए चले जाते है । कल भी आपने क्रोध किया था और कल भी आपने कसमे खायी थी कि अब क्रोध नही करेगे । आज फिर आप क्रोध करेगे और आज फिर आप पछताएँगे, कसमे खाएँगे कि क्रोध नही करेगे । कल भी यही होगा, परसो भी यही । हम आदमी नही, मशीन है । हमसे ज्यादा बुद्धिहीन प्राणी खोजना बहुत मुश्किल है । हम सीखते ही नही ।
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जिन्दगी मे जो वडी-से- बडी बात सीखने की हो सकती है, वह यह है कि परिग्रह एक व्यर्थता है । यह मै नही कहता कि वस्तुएँ व्यर्थ है, आपके घर मे जो कुर्सी है वह व्यर्थ है । कुर्सी व्यर्थ कैसे हो सकती है ? मकान व्यर्थ कैसे हो सकता है ? इसकी अपनी सार्थकता है । मैं जो कह रहा हूँ वह यह है कि वस्तुओ से अपने को भर लेने की कोई सार्थकता नही है । परिग्रह के प्रति अगर हम थोडी-सी भी आँख खोलकर देख ले तो हम अचानक पायेंगे कि मालकियत की भावना विदा हो गई है । जिस दिन हमारी पकड छूट जाती है उस दिन हम अकेले रह जाते है। न तो पत्नी रह जाती है, न मित्र, न भाई, न मकान | ये सब अपनी जगह है और एक बड़े खेल के हिस्से है । जिन्दगी के सारे सम्बन्ध शतरज के खेल है । उसके नियम है, उनका पालन करना चाहिए | और ध्यान रहे जो आदमी जिन्दगी को खेल समझता है उसके लिए नियम पालन वडा आसान हो जाता है, कठिनाई ही नही रह जाती, गम्भीरता तिरोहित हो जाती है | लेकिन कुछ लोग खेल को ही जिन्दगी बना लेते है और खेल मे भी गम्भीर हो जाते है । तब खेल मे भी तलवारे निकल जाती है ।
स्मरण रखे कि जिन्दगी की सारी की सारी व्यवस्था अपनी जगह ठीक है । वस्तुएँ वस्तुएँ हैं, घन वन है, पद पद है । इनमे आत्मा कुछ भी नही, कोई भी नही 1 इस स्मरण से अपरिग्रह फलित होता है । इससे परिग्रह से मुक्ति मिलती है । छोड़कर भाग जाने का नाम परिग्रह से मुक्ति नही है । इसलिए जिन्हे हम सन्यासी कहते हैं, वे साधारणतया इन्वर्टेड परिग्रही है - वे शीर्पासन करते हुए परिग्रही है । जो आप