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महावीर : परिचय और वाणी
कि बाहर की चीजो को इकटठा करने से भर लूंगा, फिर जब पाता है कि उसकी रिक्तता ज्यो की त्यो बनी है तब सोचता है कि बाहर की चीजो को छोडकर अपने को भर लूं। वह पागल है। जब चीजो से भरा न जा सका, तब चीजो के हटाने से कैसे भर जायगा? इसलिए ध्यान रहे, अपरिग्रह का अर्थ बाहर की चीजों को छोडना नही है; अपरिग्रह का अर्थ भीतर की पूर्णता को पाना है। ___ मैं कहता हूँ कि परिग्रह का सम्बन्ध वस्तुओ से नही है, उसका सम्बन्ध वस्तुओ पर मालकियत कायम करने से है। जिस दिन इसका ज्ञान होता है कि मैं अपना मालिक हूँ, उसी दिन भीतर की रिक्तता भर जाती है, अन्यथा नही । यह जो अपनी मालकियत है, वह एक विधायक उपलब्धि है। ऐसी मालकियत के आते ही वाहर की पकड छूट जाती है। बाहर की पकड सिर्फ इसलिए होती है कि भीतर की कोई पकड नही होती। हम बाहर पकडे चले जाते है और जिसे भी पकडते है उसकी हत्या करना शुरू करते हैं। पति अपनी पत्नी को मारना शुरु कर देता है, पत्नी अपने पति को मारना शुरू कर देती है। जब हम किसी व्यक्ति को मारकर उसके मालिक हो जाते है, तब मालिक होने का मजा चला जाता है । विना मारे मालिक नही हो सकते और मारा कि मजा गया । इसलिए मन एक पत्नी से दूसरी पत्नी पर और दूसरी से तीसरी पर जाता है। एक मकान से दूसरे मकान पर दूसरे से तीसरे पर । एक गुरु से दूसरे गुरु पर, एक शिष्य से दूसरे शिप्य पर । जिस चीज के हम मालिक हो जाते है, वह वेमानी हो जाती है, मुर्दा हो जाती है। इसलिए प्रेयसी जितना सुख देती है, उतना पत्नी नहीं देती। पत्नी बनते ही स्त्री मर जाती है ।
इसलिए समझदार परिग्रही व्यक्तियो को छोडकर वस्तुओ का संग्रह करते हैं, धन इकट्ठा करते है। जब घर मे कुर्सी आती है तब वह मरी हुई ही आती है। उसको कहाँ रखना है, इसके आप पूरे मालिक है। जब हम किसी व्यक्ति को घर मे लाते है तब उसे भी कुर्सी बनाना चाहते है । लेकिन न तो हम व्यक्तियो से अपने को भर सकते है और न वस्तुओ से। हम सिर्फ अपने से भर सकते है, लेकिन अपने का हमे कोई पता नही है । तो एक बात मैं आपसे कहना चाहूँगा कि आपके पास जो भी है, उस पर एक दफा गौर से नजर डालकर देखे और स्वय से पूछे कि उससे आप रचमात्र भी भर सके है ? क्या उसने इच भर भी आपको कही भरा है ? अतीत का अनुभव तो यही कहता है कि परिग्रह भर नही पाता, लेकिन भविष्य की आशा यही होती है कि शायद कुछ और मिल जाय और मैं भर जाऊँ । अपरिग्रही की दृष्टि तो तव आती है जव आशा पर अनुभव की विजय होती है ।
__ असल मे जो पाना है वह है दिशा 'बीइग' की, और जो हम पा रहे हैं, वह है दिगा 'हैविंग' की। जो हम पा रहे है वे है चीजे और जो हमे पाना है, वह है