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कर सकता है कि वह महावीर, बुद्ध, जीजन गा गुणगे गपुरत हा जाग । मयुक्त होने का मतलब यह नहीं कि महावीर नाही बैठे हैं जिनी नयांग हो जानना । ॐ दीया तो टूट गया और वह ज्योति भी सो गई। लेकिन मनोनि लोग्नमा किया था, उन अनुभव की सूक्ष्म तरंगे अन्तित्व तो गहनायो में आज भी सुरक्षित है । महावीर का पूर्ण धान लेकर अगर आप उन गागदलो में उतरे तो भारले लिए द्वार खुल सकते है, महावीर के अन्तन्ग को गुदम नगे बाजी माहो सकती है और आप को एहनाम हो गाना: नहावीर पावों से बनेपा बस यही रास्ता है। अस्तित्व मी नहाली में अनुगनियां गुरक्षिन जाती। वहां से उन्हें वापस पकला जा सकता है, वहां ने उनने पुन जीवन-मन्बय ग्यापित किए जा सकते है। ___ नह में इनलिए कह रहा हूँ कि मेग माग शासन के मार्ग में बिना हैि । इसलिए मेरी चर्ना सुनकर गानों में उनके तालमेल की पोन न करें। मानो ने मेरी चर्चा का कोई सम्बन्ध ही नहीं। किनी और मार्ग से चलने गीटा में न जो कुछ दिसाई पडेगा, वह मे आपने कहता चलूंगा । शिन्तु, जब तक कुछ और लोग मेरे साथ इम प्रयोग को करने के लिए राजी न होगे, तब तक यह निर्णय नहीं हो मकेगा कि मेरी बात प्रामाणिक है या नहीं।
____ महावीर के वाह्य जीवन की घटनाओ को जानना एक बात है और उनके अन्तर्जीवन को जानना दूसरी बात । महावीर के वाह्य जीवन में मुजे न तो प्रयोजन है और न उसे जानने की उत्सुकता हो । तेकिन उनके अन्तर्जीवन में क्या घटा, उससे मेरा प्रयोजन है, उत्सुकता हे और उन और इण्टि भी। मत्र बात तो यह है कि जिसे हम बाहर का जीवन कहते हैं, वह एक स्वप्न से ज्यादा मूत्य नहीं रखता।
मेरे लिए इसका कोई अर्थ ही नहीं कि महावीर क्ब पैदा हुए, कब मरे; उन्होने शादी की या नही, बेटी पैदा हुई या नहीं। हुई हो तो ठीक, न हुई हो तो ठीक | मै तो यहाँ तक कहना चाहता हूँ कि महावीर भी हुए हो तो ठीक, न हुए हो तो ठीक । महत्त्वपूर्ण है अन्तर की गति, चेतना का विकास, उनका रूपान्तरण । जिसने महावीर के वहिर्जीवन को पकड लिया है, वह वुद्ध के जीवन को समझने में असमर्थ हो जायगा । वह मोचता है कि जो महावीर के वहिर्जीवन मे है, वह उनके अन्तर्जीवन से अनिवार्य रूप से बंधा हुआ है । जव वह देखता है कि महावीर नग्न खडे है तव उसके मन मे यह वात जम जाती है कि परम ज्ञान को उपलब्ध व्यक्ति नग्न खडा होता है। और वह पूछता