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महावीर-परिचय और वाणी ने सोचा होगा कि कही महावीर का कहा हुआ विस्मरण न हो जाय, इसलिए चलो, उसे हम लिपिवद्ध कर ले, शास्त्रबद्ध कर लें। महावीर सो जायेंगे, लेकिन उनकी वाते शास्त्रो मे वची रहेगी। हम भूल जाते है कि जव महावीर-जैसा जीवन्त व्यक्ति भी सो जाता है तो क्या शास्त्रो को बचाना सम्भव है ? महावीर-जैसे व्यक्ति तो यही उचित समझेगे कि जब व्यक्ति ही विदा हो जाता है और जब यहां कुछ भी स्थिर और स्थायी नही है, तव शब्द और शास्त्र भी विदा हो जायें। जीवन का नियम हे जन्म लेना और मर जाना । जब जीवन का यह नियम महावीर को भी नही छोडता तो महावीर की वाणी पर यह नियम लाग क्यो न हो? हम क्यो आगा बाँचें कि शब्दो को बचाकर हम महावीर को बचा लेंगे | क्या बचेगा हमारे हाथ मे ? अगारा तो बझ ही जायगा, केवल राख वत्र पायगी । राख ही बचायी जा सकती है क्योकि वह मृत है । लेकिन खतरा यह है कि हम राख को ही कही अगार न समझ ले। महावीर ने चाहा होगा कि राख न बचे। कीमत की चीज अगार है, वह तो वचेगा नही और राख से कल यह धोखा हो सकता है कि यही है अगार । महावीर हिम्मतवर आदमी थे। अपनी स्मृति के लिए कोई व्यवस्था न करना वडे साहस की बात है। उनकी दृष्टि मे जो मरनेवाला है वह मरेगा ही । जो नहीं मरनेवाला है, वह नहीं मरेगा । जो मरनेवाले को बचाने की कोशिश करते है वे बडी म्राति मे पड़ जाते है । वे ही अक्सर राख को अगार ममज्ञ लेते है । शास्त्र मे जो धर्म है वह राख है। जीवन मे जो धर्म है वह अंगार है। ____ यह ध्यान रखने की बात है कि जगत् मे जो भी महत्त्वपूर्ण है, जो भी सत्य
और सुन्दर है, वह लिखा नहीं गया, वह कहा ही गया है। जब हम कहते हैं तो कोई जीवन्त सामने होता है जिससे हम कुछ कहते है। लिखनेवाले के समक्ष कोई भी मौजूद नहीं है, सिर्फ लिखनेवाला मौजूद है। इस जीवन्त सम्पर्क के कारण महावीर ने न तो शास्त्रो की भाषा का उपयोग किया, न शास्त्रीयता का । उन्होने अपने पीछे शास्त्र की रेखा बनने न दी और दिखा दिया कि ज्ञान की दृष्टि मे कोई भी व्यक्ति अनधिकारी नहीं है। ____ लोग मुझसे आकर पूछते है कि क्या अनधिकारी को ज्ञान नही मिलना चाहिए ? मैं कहता हूँ कि यह निर्णय कौन करेगा कि कौन अधिकारी है और कौन अनधिकारी ? फल नही कहता कि अधिकारी को सौदर्य दिखाई पडेगा, अधिकारी
को ही हम अपना सुगध देगे । सूरज नही कहता हमसे कि अधिकारी को ही प्रकाश । मिलेगा । खून नही कहता कि मै अधिकारी के शरीर मे ही बहूँगा । जगत् अधिकारी
की मांग नहीं करता। भगवान बडा नासमझ है, वह अनधिकारियो को जीवन देता है । और पडित बडा समझदार है, वह अधिकारी को पक्का कर ले तब ज्ञान देगा ! अधिकारी की बात ही अत्यन्त व्यापारिक और तरकीव की बात है। धर्म