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महावीर परिचय और वाणी
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जन को मापा मे न वोलत है न सोचत ह। व असाधारण जन है, धुा हुए रोग हैं।
महावीर और बुद्ध की बड़ी से बडी जातिया म एव क्राति यह भी है कि उहान, घमा ठेट बाजारमलावर खडा कर दिया, ठेठ गाव वे वाच । वह क्सिा भवन क। भीतर यद चुन हुए लकी वात न रही वह सबकी-जो सुन मवता है, जो समझ सकता है. बात हो गई।
महावीर ने सस्कृत का उपयोग नहीं किया । उसके और भी कई कारण ह । असल म जो भाषा विसी परम्परा से सवद हो जाती है, उसके अपन सम्बघ हा जात है और उसका प्रत्यय सर एव लिहित जय रे लेता है । जव कोइ उस T? का प्रयोग करता है तब उसपर के साथ जुड़ी हुई परम्परा का सारा भाव पीछे सटा हो जाता है। इम दष्टि से जनता की सीधी-साती भापा अदभुत है । वह काम करने की, व्यवहार और जीवन की मापा है। उसम बहुत गद एसे है जिन्हें नए अब दिए जा सक्त है । और महावीर के लिए परी था वि व अपन नए चितन के लिए नई गदावली लें। सस्थत सैक्डा वपों में हजारा वर्षों में परम्परा-बद्ध विचार की एक विशेष दिया म बाम कर रही थी। उसके प्रत्येक पर का बर निश्चित हा गया था। इसलिए उचित यह था कि अनपढ जनता की भाषा को सीधा उठा लिया जाय । इस भाषा को नए अथ, नए तगश, नए कोन दिए जा सकते थे। इसलिए उ होसीधी जनता की भाषा उठा ली और उस मापा म अदभुत चमत्कारपूर्ण व्यवस्था की। यह इस बात का भी प्रमाण हा सकता है कि महागार का मन शास्त्रीय नहीं है। वसुली जिनगी ये पक्षपाती ह, बुरे आपा के नीचे नग्न गडे है, इसरिए गाम्न को विरवुल हटा देत ह गास्मीय व्यवस्था को भा हटा देत है। गेरा रोगा की हमेगा परत पड जाती है जो हम सच्ची जिन्दगी का स्मरण दिलाए । नहीं तो किताव बडी रातसार है। व राच्या जीवन होने का भ्रम पदा करती है। लाग तिाव य परमात्मा को प्रायना परन रगत है । 'आग गब्द आग नहीं है । पिसी मवान पर आT रिस देन मे मकान जर ही जाता । पिनाव मे हिरो 'जल से प्यास नहीं बुझती। वितार या परमात्मा भी जारी परमा मा नहा है।
आम जनता की सीधी सारी बातचात पी मापा म गार नहीं हाता। उसम न पात्या राती है, उ पन्मिापा। महागीर न सी भाषा में T रिय भार जनता से सीधी बात पर दी। घनता ये आदमी हैं आर इम अब म व पहित परा हैं। और उन्हा। यही न पाहा कि उनका गाई शास्त्र निर्मित हो । उहान मिचिन पग पात्र मो रावने यो गित यो होगी। इसलिए उनकी मायु दे दा चार गो वर्षों तर, जब ता लगा यो गरा स्पष्ट स्मरपा रहा हामि नास्त्र नहीं रिते हैं पान नी frar T सराहा। पिर सपा