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महावीर परिचय और वाणी
१४३ गया, क्याकि उमन कहा कि न मुरोपा चाहिए और न धन, न उम्र, न सतान। मैं युध हाना नहीं चाहता। वासना के चत्र स बाहर हाते ही आप यह दसबर हैरान हो जायगे पि जिसे आपन अन त जमा स पान की आशक्षा की थी वह आपके पास ही था, वह मिला ही हुआ था। अपनी आर देखन भर की जरूरत थी। रक्नि जस अन्तरिक्ष-याना ता तक नहा हा सरनी जब तक कि हम जमीन की कशिश से छूट न जायें, वैसे ही अन्तर्याना मी तब तक नही हा सक्ती जब तक हम वासना की कशि मे मुक्त न हो जाय 1 और वासना की कशिश घरती की वशिरा से ज्यादा मज बूत है क्यापि जमीन की जो पशिश है वह खीचने की एक जड शक्ति है और वासना की जो कपिश है वह एक सजग चेतन शक्ति है । इस चर के बाहर जिसे भी छलाग रगानी हो, उसे वासना के बाहर होना पड़ता है। साक्षी का भाव वासना + वाहर रे जाता है। जैसे ही कोई यकिन साली हा कि वह वासना के बाहर चला गया ।
लेकिन यह न भूल वि जीवन मे साक्षी होना बहुत कठिन है । हम नाटक फिरम तर म माक्षी नहीं होन। कई बार तोमा हो जाता है कि बाहर की जिदगी हम उनना ज्यादा नहा पक्डती जितनी चित्र की कहानी पकड़ लेती है। अगर हमे स्मरण आ सब वि हम भी एक लम्बा नाटक खेल रहे है तो शायद हम भी साक्षी हा सकें। बहुत गहरे म जीवन और फिल्म म ज्यादा फर नहीं है। हमारा शरीर उसी तरह विद्युत् प्रणा स बना है जिस तरह फिल्म के परदे पर दिखाई पडन वाला शरीर विद्युत-कणा से बना है। मैं यह नहीं कहता कि आप नाटक न निभाएं। सचमुच जा इस नाटक का जितना अच्छी तरह निमा लेता है वह उतनी ही क्त्तय निष्ट समया जाता है। वस्तुत नाटक निमान ये रिए होने और मजेदार भी होता है। बम, एक बात न भूलें चाह और सब क्या न मूल जायें। वह यह है कि यह जीवन सिफ नाटक है। स्वामी रामतीय जस लोगा को इस रहस्य का पता था। तभी तो रामतीथ हमेशा अय पुरुष ('याड पसन ) में ही चोरते थे। जब उन्हें गारी पड़ती तो वे हंसते और रहते-रेखोराम का कमी पडी ? राम फसी मुश्विर म फेमे ? आ गया न मजा ?
यह सयार कि मैं कहा और हूं, अलग हूँ, सारे रोल से वही दूर है, साभी बना देता है और वासना की दौड टूट जाती है । मेर फिर भी चलता है क्या आप यरले पिलाडी नहा । जहाँ बुद्धिमत्ता आती है वहाँ गगन माया सनाटक से-- अलग नहीं हो जाता। यहाँ नाटय और जगत एक ही हो जात हैं। जिस दिन साक्षी जीवन से अलग सहा हा जाता है उसी दिन वह दौर के बाहर हो जाता है। ___ महावीर को साधना मौलिफ रूप से साभी की साधना है। सभी साधनाएँ मौलिय स्परा साली की ही सायनाएं हैं कि हम विस भांति देसनवाले हो जा, म तो भागने वाले रह जाये और न करने वाए । सिफ साक्षी रह जाय।