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महावीर : परिचय और वाणी
सभी मुक्त व्यक्ति रुकते हो, ऐसा भी नही है । लेकिन जो व्यक्ति रुक जाते है वे हमे ईश्वरीय दूत जैसे लगते हैं, क्योकि वे हमारे वीच से नही आते । वे उस दशा से लौटते हे जहाँ से साधारणत कोई भी नही लोटता । इसलिए ऐसे व्यक्तियो के सम्बन्ध मे अलग-अलग धर्मो मे अलग-अलग धारणाएँ प्रचलित है । हिन्दू उन्हें अवतार कहते है और मानते हैं कि उनके रूप मे ईश्वर स्वयं उतर रहा है-वहाँ से उतर रहा है जहाँ हम जाना चाहते है । स्वभावतः अवतरण की धारणा बनानेवालो को इसका खयाल न रहा कि वह व्यक्ति भी यात्रा करके ऊपर गया होगा, तभी तो वह वापस लोटा है । इस आधे हिस्से पर उनकी दृष्टि नहीं गई । जैन धर्मानुयायियो ने अवतरण की बात ही नहीं की, उन्होने तीर्थकर कहा जिसका अर्थ है वह व्यक्ति जिसके मार्ग पर चलकर कोई पार जा सकता है। लेकिन पार उतरने का इशारा वही दे सकता है जो पार तक गया होगा । तीर्थकर से उस व्यक्ति का बोध होता है जो उस पार को छूकर लोट आता है। मैं मानता हूँ और यही उचित भी भी है कि पार गया हुआ व्यक्ति कम-से-कम एक बार लौटकर खबर दे और बताये कि उसने क्या देखा और पायाउस पार । जैनो ने अवतर की बात नही की, क्योंकि ईश्वर की धारणा उन्होने स्वीकार नही की । इसी प्रकार ईसाइयो ने न तो तीर्थकर की धारणा की ओर न अवतार की । उन मुक्तात्माओ के लिए जो लोट आए है वे 'ईश्वरपुत्र' का प्रयोग करते है । उनका खयाल है कि ईश्वर के सम्बन्ध मे जो खबर देता है वह ईश्वर के उतना ही निकट होगा जितना वाप के निकट वेटा होता है । बेटा बाप के प्रांणो का हिस्सा होता है । ईश्वर पुत्र ईश्वर की खबर तभी दे सकता है। जब वह सचमुच ईश्वर का वेटा हो, जब ईश्वर का ही खून वहता हो उनकी धमनियो से । जगत् में इस तरह की अन्य धाराएं भी प्रचलित है ।
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तो, मैं कह रहा था कि मुक्त व्यक्ति एक बार लौट सकता है । महावीर के अत्र लौटने का सवाल नही है । महावीर लौट चुके है | लेकिन बुद्ध के लौटने का सवाल अभी बाकी है । मैत्रेय के नाम से भविष्य में उनका एक अवतरण होगा । बुद्ध को सत्य की जो उपलब्त्रि हुई थी वह इसी जीवन मे हुई थी, इसके पहले जीवन मे नही । उन्होने जो पाया था वह इसी जीवन मे पाया था । इसलिए उनके आने की उम्मीद है। जीजस भी आएँगे । थियोसॉफिस्टो
मैत्रेय को लाने के लिए भारी प्रयास किया था । वह प्रयास अपने किस्म का अनूठा था । कुछ लोगो ने प्राणो को सकट मे डालकर आमन्त्रण भेजा और कृष्णमूर्ति को तैयार किया कि मैत्रेय की आत्मा उनमे प्रविष्ट हो जाय । कृष्णमूर्ति को तैयारी मे वीस-पच्चीस वर्ष लग गए। उनकी जैसी तैयारी हुई, दुनिया मे वैसी किसी आदमी को शायद ही हुई हो । अत्यन्त गूढ साधनाओ से कृष्णमूर्ति को गुजारा गया । ठीक वक्त पर तैयारियाँ पूरी हुई । सारी दुनिया से कोई छह हजार लोग उस स्थान पर