________________
१३८
महावीर : परिचय और वाणी इसलिए निगोद अनन्त है, उसमे कभी कमी नहीं पड़ती। मोक्ष अनन्त है, वहाँ कभी भीड नहीं होती। दोनो के बीच का समार भी अनन्त है, क्योकि दो अनन्तो को जोडनेवाली चीज अनन्त ही हो सकती है। दो अनन्तो का जो मेतु बनता है, वह सीमित कैसे हो सकता है ? अनन्तो को अनन्त ही जोड सकता है।
और यह भी स्मरण रहे कि निगोद से आत्मा सीधे मोक्ष तक नहीं पहुंच सकती। मूछित आत्मा को अमूर्छा के रास्तो से गुजरना ही पड़ता है। जब आप निद्रा से जागते है तो विलकुल जाग नही जाते; बीच मे तन्द्रा का एक काल है, जिससे आप गुजरते है। सोने और जागने के बीच तन्द्रा का एक अल्माधिक काल होगा ही, चाहे वह कितना ही छोटा क्यो न हो, जब आप न तो जाग गए होते है और न सोए हुए। सोने की ओर भी झुकाव होता हे और जागने की ओर भी। निगोद से सीधे कोई मोक्ष मे नही जा सकता। ससार से गुजरना ही पड़ता है।
यह भी संभव नहीं कि मुक्त आत्माएँ पुन समार को लौट आएं। निगोद से ससार और ससार से मोक्ष की यात्रा जल की यात्रा की तरह नही है। जल भाप वनता है और फिर बादल। बादल वरम कर समुद्र में पुन आ मिलता है। यह न भले कि पानी, भाप और समुद्र तीन चीजें नही है। जल का चक्र एक ही चीज का यात्रिक चक्र है। पानी के बीच से कोई बंद मुक्त होकर पानी के बाहर नही हो पाती। चक्र घूमता रहता है। जहाँ तक मोक्ष का सम्बन्ध है, वहाँ से लौटना मुश्किल है। हाँ, ससार मे कोई चक्कर लगा सकता है। एक मनुष्य हजार वार मनुष्य होकर चक्कर लगा सकता है, क्योकि वह सोया हुआ है। अगर वह जाग जाय तो चक्कर लगाना वद कर दे, वह बाहर हो जाय चक्कर के । चूंकि मोक्ष समस्त चक्कर के बाहर हो जाने का नाम है इसलिए उससे लौटना असम्भव है। पदार्थ का जगत् निगोद मे है। हम कह सकते है कि पानी गरम करेंगे तो भाप बनेगा ही। ऐसा जल नही देखा गया जो कहे कि मै भाप नही बनूंगा। उसके पास कोई चेतना नहीं है । हम पानी के सम्बन्ध मे कह सकते है कि वह भाप बनेगा ही। लेकिन मनुष्य के सम्बन्ध मे ऐसे निष्कर्ष निकाले नहीं जा सकते और न कुछ पूर्व सूचनाएं ही दी जा सकती है। यह जरूरी नही कि जिसे हम प्रेम दे वह हमे भी प्रेम दे। मनुष्यो के सम्बन्ध मे, उनकी प्रतिक्रियाओ के सम्बन्ध मे भविष्यवाणी नहीं की जा सकती, कारण कि उनमें चेतना है। पदार्थ की सारी व्यवस्था यात्रिक है, मनुष्यो की नही। पदार्थों के नियम है-- यथा, पानी को गर्म करते जाओ तो एक ऐसी स्थिति उत्पन्न होगी कि पानी भाप वन जायगा। यह तिब्बत मे करो या अफ्रीका मे। वह भाप बनेगा ही। लेकिन जैसे- जैसे हम ऊपर जाते है, वैसे-वैसे हमारी यात्रिकता टूटती चली जाती है और आदमी मे आकर यह वहुत शिथिल हो जाती है । आदमी के सम्बन्ध मे पक्का नही कहा जा सकता कि वह क्या करेगा? तरह-तरह के लोग है और उनकी तरह-तरह की चेतना है।