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महावीर : परिचय और वाणी होगा कि प्रत्येक की मौजूदगी दूसरे के होने के लिए अनुकूल वातावरण पैदा करती है। इस प्रकार एक शृखला-सी निर्मित हो जाती है। जिस क्षेत्र में किसी तीर्थकर का अवतरण होता हे उस क्षेत्र की चेतना ऊँची उठ जाती है जिससे दूसरा तीर्थकर पैदा होता है, और उस दूसरे से तीसरा और तीसरे से चीथा । स तरह तीर्थकरो की शृखला बन जाती है। यह भी जानकर आप हैरान होगे कि जब दुनिया में महापुन्य पैदा होते है तो करीब-करीव एक शृखला की तरह गारी पृन्ची को घेर लेते हैं। महावीर, बुद्ध, गोशाल, अजित, सजय आदि सव-के-सव विहार मे ही हुए और वह भी पाँच सौ वर्षों के अन्दर । इन्ही पांच सौ वपों मे एथेन्म मे सुकरात, जरस्तू, पोटो आदि तथा चीन मे कन्फ्युसियस और लामोत्ने हुए । पाच नो वर्षों मे सारी पृथ्वी पर प्रतिभा का मानो शृंखलाबद्ध विस्फोट हुआ। जब महावीर की कीमत का कोई इन्सान पैदा होता है तो वह अपने-जैसे सैकडो लोगो के पैदा होने की सम्भावना भी पैदा करता है। ऊपर से दीराता है कि महावीर और वृद्ध परस्पर विरोधी है। लेकिन महावीर के विस्फोट का फल है वुद्ध-फल इस अर्थ मे कि अगर महावीर न होते तो बुद्ध का होना मुश्किल था। ऊपर से लगता है कि अजित, पूर्ण काश्यप, गोशाल सब विरोधी है। लेकिन किसी को खयाल नही कि वे सब एक ही शृखला के हिस्से है। एक का विस्फोट हुआ है तो हवा बन गई है। उसकी उपस्थिति ने सारी चेतनाओ को इकट्ठा कर दिया है और आग पकड़ गई है। प्रतिभा के विस्फोट के लिए उपयुक्त हवा चाहिए।
यह भी स्मरणीय है कि तीर्थकरो का तख्या से कोई सम्बन्ध नही। पच्चीसवाँ तीर्थकर भी हो सकता था, लेकिन जैनो ने उसे स्वीकार नही किया। वही नई शृखला का पहला पैगम्बर वना। यदि जैन पच्चीसवां तीर्थकर मान लेते तो बुद्ध को एक अलग शृखला मे रखने की जरूरत न पडती। वे पच्चीसवे तीर्थकर हो जाते । कठिनाई यह है कि जब भी कोई परम्परा अपने अन्तिम पुरुप को पा लेती है तो फिर वह उसके बाद दूसरो के लिए द्वार वन्द कर देती है। चूंकि नई प्रतिभा नए-नए उपद्रव लाती है, इसलिए उसे पुरानी शृखला मे स्थान पाना मुश्किल हो जाता है । इसलिए पच्चीसवे को नई शृखला की पहली कडी होना पड़ता है। बुद्ध पच्चीसवे हो गए होते, कोई बाधा न थी अगर जैनो ने द्वार खोल रखे होते । एक और कारण हो गया कि बुद्ध उसी वक्त मौजूद थे, इसलिए द्वार वन्द कर देना एकदम जरूरी था। अगर वे पुरानी शृखला मे आते तो सब अस्त-व्यस्त हो जाता, महावीर की बाते भी अस्तव्यस्त हो जाती, नई व्यवस्था बनानी पडती और वह नई व्यवस्था मुश्किल मे डाल देती। इस वजह से दरवाजा बन्द कर दिया गया और कहा गया कि चौबीस से ज्यादा तीर्थकर हो ही नहीं सकते और यह कि चौबीसवाँ तीर्थकर हो चुका।
यह सारी व्यवस्था अनुयायियो की है। उन्हें डर होता है कि यदि नई प्रतिभा