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महावीर परिचय और वाणी
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जमा में उनके असतोप की यात्रा बहुत लम्बी थी। वह असताप यह 7 जानन पे पारण था कि मेरा अस्तित्व, मेग मत्य, मेरी वह स्थिति जहाँ मैं परम मुक्त हो नाऊ, जहा न काई सीमा रहे भोर काई बधा, यहाँ है ? महावीर उसी को साज म और यह निर्विवाद है कि ऐसी सावारा व्यक्ति दूसरा ये पारिवारिक जार मामातिय असताप को मिटाने के लिए ही अधिष उत्सुम रहता है, न कि स्वय की चिता करता है। अगर हम सोजने जाय ता ऐसा जादमी मुरिकर से मिलगा जिसे न मकान से अप्ति है, न पडा से, न पत्नी से न अपने प्रियजना स । जय आदमी अपने प्रति ही असन्तुष्ट हो जाता है तब उसके जीवन मे घम मी पामा शुरू होती है। महावीर पिछले जमा म पसर असतुष्ट रहे । वही यामा उहें वहाँ तर राई जहाँ तृप्ति और सतोप उपलव्य होता है । जिस दिन व्यक्ति अपन को पातरिश परख उसे पा लेता है जा वह वस्तुत है उस दिन उसके लिए परम तृप्ति पा क्षण आ जाता है। अगर यह फिर एक क्षण भी जीता है तो दूसरा रिए ही, ताकि यह उहें तृप्ति ये माग की दिशा बना सके।
पूछा जाता है पि क्या महावीर का गहत्याग दायित्व से पलायन नहा है ? मरा कहना है कि महावीर ने भी गहत्याग किया ही नहीं। गहत्याग व रोग करते हैं जिहें गह के प्रति आसवित होती है। महावीर ता उस ही छोड़ा जा घर न था। मिटटी, पत्थर के परा यो हा हम पर समक्ष रत हैं जा सक्था गग्न है। वस्तुन यह राम-'गहत्याग'-होमात है । असर में महावीर घर की पाज में निकल थे। जा पर नहा था उसे हो छोडा था और जो घर था उसकी तलाापी थी। जो घर नहीं है, हमो उग ही पकड रखा है। जो पर है उरास हम दूर जा पहें हैं । इसलिए शर्ट के सच्चे अथ म पलायनवादी हम है, महावीर नहीं। परायन पा मतपय पया है एक आदमी क्यहा और पत्थरामो परमर कहता है, यही हमारे हीर हैं और वह अमली हीरा को छोट देता है । दूसरा असली हीरे सामाज म निगर पाता है । इन दोना म पायावादी यौन है क्या आनद को सात पलायन है ? क्या मान पीसोज परायन है ? महावीर जैसा आदमी दूगा पर वटपर व्यवगाय पलारा है। दा पर, यया यही दायिताव हागा उसया जगत के प्रति, जीया प्रति ? महापौरजा व्यक्ति पर म बेटार बार बच्चा मो वहा करता रह मया यही दापि व हागा उमा? जब बड़े दायित्व पुधारत है तब छोटे दापि या माघार या पाता है। महा यार जसा व्यक्ति जर एप घर का माहता है तब उस रोड पर मिल जाता है प उसपे हो मान हैं। पत्ला, बेट और प्रियजना वा छाया है ता सारा जगा उगरा प्रिपजन और मित्र हा जाता है। ___ पादुग ये मार को दूसरा पर लाना ही हमारा दापिर है। बता पो या म औरों को गति देना ही हम दायित्व रामसत हैं। पलाया यह परवा 1