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महावीर : परिचय और वाणी चले गए। टाप फूलो पर पडी ताकि गांव जाग न पात्र। वहत करलो के बाद ही प्रव्रज्या के लिए किमी का ऐसा अभिनिष्क्रमण होता है। अनलिए देवता राजमान के दरवाजे भी खोल देते है मे ये कभी बन्द ही नई हों। द्वार की जो पीले पागल हाथी के धरके से भी न पुरती वे पर जाती है और जिन दरवाजो से बुलने समय इतनी आवाज होती है कि उसे माग नगर गुन लेता है. वै चुपचाप सूल जाती है । ऐसी सारी कहानियां यपोलस पित है, लेकिन साथ ही ये इन बात नी सूचना देती हैं कि ऐसे व्यक्ति के लिए सारा जगत, मारा मस्तित्व सुविधा देने लगता है, क्योकि समस्त अस्तित्व को ऐसे व्यक्ति की जररत होती है। मगर हम सबके लिए अस्तित्व की ही आवश्यकता रहता है। हमारी सांस चले, इसलिए हम की जरत होती है, प्यास बुझे, इसलिए पानी की आवश्यकता होती है, गर्मी मिले इसलिए सूर्य की जरूरत होती है-सारे अस्तित्व की जरूरत होती अपने है लिए। लेकिन अस्तित्व को ही जरूरत थी महावीर की। इसलिए वे कहते थे कि अगर जिन्दा रखना हो तो मेरी गर्ते पूरी करो, नही तो हम वापस लौट जायेंगे। न कोई गियायत है पीछे लौटने से, न कोई नाराजगी है। ___लोग पूछते है कि महावीर के गृहत्याग के पीछे कौन-सा असतोप था और क्या उनका गृहत्याग जीवन और इसके नाना दायित्वों से पलायन नहीं है ? पहली बात यह है कि महावीर को न तो कोई पारिवारिक असन्तोष या नार न कोई सामाजिक असन्तोष । इस जन्म मे तो कोई व्यक्तिगत असन्तोप भी न था। पारिवारिक असन्तोष से घिरा व्यक्ति कभी धार्मिक नही हो सकता। धार्मिक होता है वह व्यक्ति जिसके असन्तोप का न तो समाज से कोई सम्बन्ध होता है और न परिवार, सम्पत्ति या शरीर से । धार्मिक व्यक्ति का उदय तब होता है जब उसके भीतर बसतोप की आग भभक उठती है और उसे चिन्ता इस बात की होती है कि क्या ऐसा हाना ही काफी है ? अगर हिंसक हूँ तो हिंसक होना ही काफी है ? अगर दुखी और अशान्त हूँ तो क्या दुखी और अशान्त होना ही पर्याप्त है ? इस जीवन में महावीर को यह असन्तोष भी न था, क्योकि धार्मिक व्यक्ति का जन्म पहले ही हा चुका था। पिछले जन्मो मे भी उनका असन्तोष नितान्त आध्यात्मिक था, सामाजिक या पारिवारिक नही । आध्यात्मिक असन्तोष वहत कीमती चीज़ है और वह जिनम नही है वह व्यक्ति कभी उस यात्रा पर नहीं जा सकता जिसका अन्त आध्यात्मिक सन्तोप की उपलब्धि मे होता है। जिस असन्तोप से हम गुजरते है उसी तल का सन्तोप हमे उपलब्ध हो सकता है। अगर धन का असन्तोप है तो ज्यादा-से-ज्यादा धन मिलने का सन्तोप उपलब्ध हो सकता है। लेकिन वडे मजे की बात है कि जिस तल पर हमारा असन्तोप होगा उसी तल पर हमारा जीवन भी।
महावीर को इस जीवन मे किसी बात का असंतोष न था, लेकिन पिछले सारे