________________
ज्यों था त्यों ठहराया
लेकिन एक फायदा भी है। और फायदा यह है कि मौत करीब आ रही होती है। मौत दरवाजे पर दस्तक देने लगती है। तो यह भी सवाल उठना शुरू हो जाता है कि जिंदगी भर इस ढंग से जीए तो जरूर, मगर पाया क्या? हाथ क्या लगा? और मौत करीब आई जा रही है। अब देर करने का समय नहीं है। अब समय गंवाने का मौका नहीं है। अब कल पर नहीं टाला जा सकता। पता नहीं कल हो या न हो। और एक क्षण में मौत आ जाती है। और एक क्षण में सब बदल जाता है। दबा के कब्र में सब चल दिए, दुआ न सलाम जरा-सी देर में क्या हो गया जमाने का! एक क्षण में जो अपने थे--अपने नहीं रह जाते। बेगाने हो जाते हैं। क्षण में जीवन तिरोहित हो जाता है। दबा के कब्र में सब चल दिए, दुआ न सलाम! और कोई सलाम भी नहीं करता; दुआ भी नहीं करता। यह भी नहीं कहता कि अलविदा! जल्दी पड़ती है। आदमी मरा कि कैसे छुटकारा हो अब इस लाश से! क्योंकि पक्षी तो उड़ आया, अब तो पिंजड़ा पड़ा रह गया। अब इस पिंजड़े को क्या दुआ करो, क्या सलाम करो! दबा के कब्र में स चल दिए, दुआ न सलाम जरा-सी देर में क्या हो गया जमाने को! वही हैं हम कभी जो रात-दिन फूलों में तुलते थे वही हम हैं कि तुरबत चार फूलों को तरसती है। तो जैसे मौत करीब आती है, वैसे एक लाभ भी है कि मौत जगाने लगती है। मौत पूछने लगती है, कमाया कि गंवाया? तैयार हो चलने को उस अनंत यात्रा पर कि यूं ही व्यर्थ के उलझनों में उलझे रहे? व्यर्थ के धोखे खाते रहे? आत्म-वंचनाओं में पड़े रहे? तो तुम्हारे माता-पिता संत, अब बूढ़े हो रहे हैं। तो यूं तो मुश्किल होगा बदलना, क्योंकि पुरानी आदतें। मगर मौत भी दरवाजे पर दस्तक देगी अब। इसलिए बदलना आसान भी हो सकता है। इस पर निर्भर करता है कि किस बात पर ज्यादा ध्यान देते हैं। अगर पुरानी आदतों पर ही आंखें गड़ाए रहे, तो मौत को नकारते रहेंगे। लेकिन तुम जैसा बेटा जिनके घर में पैदा हुआ है, वे देखेंगे आगे। संत से मुझे प्रेम है, इसलिए तो संत महाराज कहता हूं। ऐसे आदमी संत नहीं हैं--अंटशंट हैं! मगर उनको मैं संत महाराज कहता हूं। मुझे प्रेम है, लगाव है। सरल है संत। बहुत सरल है। बहुत सीधा-सादा है। छोटे बच्चे जैसा है। तो जिसमें इतना सरल फूल खिला हो, उन मां-बाप के भी जीवन में भी क्रांति होनी की संभावना पूरी है। जाने कितना जीवन पीछे छूट गया अनजाने में अब तो कुछ कतरे हैं बाकी सांसों के पैमाने में।
Page 91 of 255
http://www.oshoworld.com