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ज्यों था त्यों ठहराया
गहला तेता गाया! बहुत गाया गया है। गीत एक है। सत्य एक है। लेकिन कोई अब तक उसे कह नहीं पाया। कोई कभी कह भी न पाएगा। रवींद्रनाथ नाहक रो रहे थे। रवींद्रनाथ को बुद्धत्व का कोई अनुभव नहीं था, नहीं तो नहीं रोते। जानते इस सत्य को कि उस गीत को गाया नहीं जा सकता। हां, जितना बने, उतना गा दो। मगर यह आशा मत करो कि कभी पूर्ण रूप से सत्य को शब्द में बांधा जा सकेगा। न उपनिषद बांध पाते हैं, न ब्रह्मसूत्र, न कुरान; कोई नहीं बांध पाता। हां, जिससे जितना बन सका; जिसमें जितनी सामर्थ्य थी-- उसने गुनगुनाने की कोशिश की है। अनुकंपा है कि बुद्ध बोले, कि मोहम्मद गाए। अनुकंपा है। लेकिन सत्य तो अनुभव है। जैसे ही शब्द में आया कि दो हो गया--दुई हो गई! और जैसे ही किसी को कहा--तैत्र हो गया! और जैसे ही किसी ने सुन कर उसकी व्याख्या की--बात और बिगड़ गई! गीता की हजार व्याख्याएं उपलब्ध हैं। बात बिगड़ती ही चली जाती है। टीकाओं पर टीकाएं होती रहती हैं! बात बिगड़ती ही चली जाती है। इसीलिए जब कोई बुद्धपुरुष जीवित होता है, तब जो उसके निकट होते हैं, बस, वे ही थोड़ा-बहुत स्वाद ले लें, तो ले लें। बाद में तो बात बिगड़ती ही जाएगी। जितनी देर होती जाएगी, उतनी बिगड़ती जाएगी। इसलिए धर्म जितना पुराना होता है, उतना ही सड़ जाता है। धर्म तो नया हो, अभी-अभी अनुभव के सागर में जिसने इबकी मारी है, जो अभी-अभी मोती लाया हो--शायद कुछ थोड़ा गुनगुना पाए; शायद थोड़ा कुछ इशारा कर पाए। लेकिन जितना पुराना हो जाता है, उतना ही सड़ जाता है। हिंदू-धर्म का यही दुर्भाग्य है कि यह सबसे पुराना धर्म है पृथ्वी पर। इसलिए इसकी सड़ांध गहरी है। यह भूल ही गया नया होना। इसे अपनी काया बदलनी है बार-बार। यह कायाकल्प की प्रक्रिया भूल गया। और जब भी इसकी कायाकल्प करने की किसी ने चेष्टा की, तो इसने इनकार कर दिया। हम मुर्दे के पूजक हो गए। हमने बुद्ध को इनकार कर दिया। महावीर को इनकार कर दिया। हमने कबीर को इनकार कर दिया; हमने नानक को इनकार कर दिया। काश! हम बुद्ध को इनकार करते, तो बुद्ध उपनिषदों को फिर जन्म दे जाते। काश! हम कबीर को इनकार न करते, तो कबीर ने फिर बुद्ध को पुनरुज्जीवित कर दिया होता। काश! हम नानक को इनकार न करते, तो बात फिर निखर-निखर आती। धर्म का रोज पुनर्जन्म होना चाहिए। जैसे पुराने पत्ते गिरते जाते हैं और नए पत्ते आते चले जाते हैं। जैसे नदी की धार। पुराना जल बहता जाता है और नया जल उसकी जगह लेता जाता है। धार रुकी--कि सड़ी। धार रुकी--कि सरिता मरी। फिर डबरा हआ। बहने दो। बहते रहने दो। यह गंगा को पूजने वाले भी राज न समझ सके! गंगा को पूजा, लेकिन असली गंगा को भूल गए। असली गंगा को तो इन्होंने कठौती में बंद कर लिया! ये कहते हैं, मन चंगा, तो
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