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ज्यों था त्यों ठहराया
और तब तक तोते, और कौए, और जमाने भर के पशु-पक्षी, वे नहीं छोड़ेंगे। वे तुम्हारे पहले खा जाएंगे। पकने के पहले उनको पता चल जाता है। तुम तक बचने देंगे वे! गिरने के पहले खा जाएंगे। पका फल जब गिरे अपने आप, तो हिंसा नहीं है। तुमने तोड़ा तो हिंसा है। सब्जी खाओगे-- हिंसा है। इसलिए जैनों ने खेतीबाड़ी बंद कर दी। क्योंकि खेतीबाड़ी में तो वृक्ष काटने पड़ेंगे, पौधे काटने पड़ेंगे; और हिंसा होगी--महान हिंसा होगी! मगर गेहूं तुम खा रहे हो। कोई दूसरा काट रहा है। लेकिन काट तुम्हारे लिए रहा है। तुमने किसी को पैसे दे कर किसी की हत्या करवा दी। क्या तुम सोचते हो, तुम हत्या के भागीदार नहीं? क्या तुम सोचते हो, जिसने हत्या की, वही भागीदार है? ज्यादा तो तुम्ही भागीदार हो। तुमने ही पैसा दे कर हत्या करवा दी। तो माली बगीचे में काम कर रहा है पैसे ले कर। खेत में किसान काम कर रहा है, क्योंकि पैसा मिलेगा। करवा तो तुम रहे हो। कटवा तुम रहे हो। मगर तुम निश्चिंत हो कि हिंसा मैं नहीं कर रहा; हिंसा कोई और कर रहा है! हमें क्या लेना-देना! हम तो अलग खड़े हैं। हम तो दूर खड़े हैं। हिंसा तो श्वास लेने में भी हो रही है। एक बार जब तुम श्वास लेते हो, तो कम से कम एक लाख जीवाणु मरते हैं। कैसे बचोगे हिंसा से? आत्मबोध हो, तो तुम जो भी करोगे, उसमें प्रेम होगा। मैं हिंसा से बचने को नहीं कहता। नहीं कह सकता। क्योंकि जीवन ही हिंसा है। मैं तो इतना ही कह सकता हूं कि कितना तुम्हारा प्रेम प्रगाढ़ हो जाए, उतनी कम हिंसा। और प्रेम अगर परिपूर्ण हो जाए, तो अभी वैज्ञानिकों ने खोज की है कि अगर वृक्षों को भी प्रेम से काटा जाए, तो हिंसा नहीं है। इसके अब तो वैज्ञानिक सबूत उपलब्ध हैं। क्योंकि इस तरह के यंत्र बन गए हैं, जैसे तुमने कार्डियोग्राम देखा, जिसमें तुम्हारे हृदय की धड़कनों की जांच-परख की जाती है। जैसे नब्ज तुम्हारी देखता है चिकित्सक, या तुम्हारा रक्तचाप देखता है, वैसे ही सूक्ष्म यंत्र बन गए हैं, जो वृक्षों की संवेदनशीलता को आंकते हैं। जब वृक्ष दुखी होता है, तो यंत्रवत में से चीख की आवाज आती है। और जब वृक्ष आनंदित होता है, तो यंत्र में से दूसरी आवाज आती है--सुमधुर--जैसे गीत गा रहा हो! इशारे यंत्र में आ जाते हैं। ग्राफ बन जाता है, कि वृक्ष दुखी है या सुखी है। जब कोई आ कर वृक्ष को क्रूरता से काटने लगता है, तो चीख उठ आती है यंत्र में। ग्राफ एकदम बिगड़ जाता है; एकदम अस्तव्यस्त हो जाता है। लेकिन अगर तुम प्रेम से वृक्ष को कहो कि एक फल मुझे चाहिए। तुम चकित होओगे। वृक्ष यूं बोलते नहीं, लेकिन तुम्हारे प्रेम को समझेंगे, तुम्हारी भाषा को समझते हैं। तुम अगर प्रेम से कहो, मुझे एक फल चाहिए; मैं भूखा हूं। तुम्हारी बड़ी कृपा होगी--मुझे एक फल दे दो। और तुम एक फल प्रेम से तोड़ लो, तो यंत्र में ग्राफ बनता है, जिसमें कोई चीख-पुकार नहीं--कोई चीख-पुकार नहीं! ग्राफ
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