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ज्यों था त्यों ठहराया
नहीं; क्योंकि बौद्ध भिक्षु को देने का बड़ा लाभ है! तुम जरा गणित देख रहे हो? साफ है। दान हमको दो! पहले समझाते हैं कि धन माया है, ताकि जरा तुम्हारी मुट्ठी ढीली हो; फिर कहते हैं--अब दान करो--और दान हमको करना! ब्राह्मण कहता है मुझको; जैन मुनि कहता है मुझको; बौद्ध भिक्षु कहता है मुझको--दान मुझको करना, तो ही लाभ पाओगे, तो ही पुरस्कार मिलेगा स्वर्ग में! किसी और को मत दे देना, नहीं तो भटकोगे। बेकार गया। गौ-हत्या बंद करवाना घातक होगा। और ऐसा नहीं है कि मैं कोई गऊओं का दुश्मन हूं। लेकिन मैं पूछना चाहता हूं कि ये सज्जन अपने को कहते हैं मैं गौ-भक्त हूं, यह भक्ति कैसी, किसलिए भक्त हो गऊ के? इसीलिए न कि उससे दूध मिलता है! यह भक्त है या स्वार्थ?
और दूध तुम्हारे लिए शंभू महाराज, गौ में पैदा होता है कि गौ के बछड़े के लिए पैदा होता है? यह गौ के बछड़े से छीनना और दूध शंभू महाराज पीएं, यह तो शोषण है, बलात्कार
है।
अगर असली गौ-भक्त हो, तो दूध पीना बंद कर दो, पहली तो बात। गौ-भक्त दूध नहीं पी सकता। कैसे पीएगा? गौ-भक्त को तो यह करना चाहिए कि अपनी पत्नी का दूध बछड़ों को पिलवाए! यह सीधी बात होगी, अगर भक्ति है। यह कैसी भक्ति है कि बछड़ों को अलग हटा कर उनका दूध खुद पी रहे हो! और दूध को कहते हैं कि बड़ा शुद्ध आहार है, सात्विक आहार है! छीन रहे हो, हिंसा है यह। और गौ के बछड़ों को बांध देते हैं पास। सच तो यह है कि मुर्दा बछड़ों को बांध देते हैं, मरेमराए बछड़ों में भुस भर कर रख देते हैं, ताकि गौ को धोखा रहे कि बछड़ा पास है, तो उसके स्तन से दूध बहने लगे। अगर अपनी पत्नियों का दूध पिलाओ बछड़ों को, सांडों को, नंदियों को! यह भक्ति होगी! जो आदमी गौ का मांस खा रहा है, वह भी भक्त नहीं है। और जो गौ का दूध पी रहा है, वह भी भक्त नहीं है। क्योंकि दोनों शोषण कर रहे हैं गौ का। और ये गौ-भक्त तो गजब का शोषण करते हैं! ये तो पंचामृत पीते हैं। ये दूध ही नहीं पीते; गौ-मूत्र, गोबर, दूध, दही, घी--इन पांच चीजों का नाम पंचामृत! इससे तो मोरारजी भाई देसाई बेहतर, कम से कम अपना तो पीते हैं--स्वदेशी! स्वावलंबी! क्या गौ का पी रहे हो! अरे, ऋषि-मुनि पहले ही कह गए कि अमृत-घट भीतर है! मगर मोरारजी देसाई के पहले कोई नहीं खोज पाया था--अमृत-घट कहां है! अमृत घट यानी ब्लैडर! वहां अमृत भरा हुआ है। और टोंटी भी परमात्मा ने दी हुई है, जब चाहो तब निकालो और पीओ! मैं तो मोरारजी भाई को कहूंगा: थोड़े और आगे बढ़ो--पंचामृत बनाओ। क्या जीवन-जल ही पी रहे हो! पंचामृत पीओ, तो अमर हो जाओगे। जब स्वमूत्र पीने से पचासी साल जी गए और प्रधानमंत्री बन गए, अगर पंचामृत पीओ, अपना ही पंचामृत होना चाहिए, फिर तो मौत असंभव है। और पक्का समझो कि तुम सारी दुनिया के राष्ट्र जब इकट्ठे हो जाएंगे, तुम्हें पहले उसके प्रधान बनोगे--बड़ा प्रधान! असली बड़ा प्रधान!
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