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ज्यों था त्यों ठहराया
पीया हआ आदमी कैसे बचे! कुछ न कुछ भूल कर ही लेगा। कुछ न कुछ चूक हो ही जाएगी। बेहोशी में चूक होनी निश्चित है। बेहोशी में यह हआ कि लोग ईसाई हो गए। ईसा होना था--ईसाई हो गए! ईसाई होने का अर्थ है: नकल में पड़ गए। ईसा जैसे होने की नकल में पड़ गए। और नकल का कोई मूल्य नहीं है। झूठे सिक्के हैं। इनकी कितनी ही कतार लग जाए! आधी पृथ्वी ईसाई है। करोड़ों लोग ईसाई! करोड़ों लोग हिंदू! करोड़ों लोग मुसलमान। करोड़ों लोग बौद्ध--और जिंदगी बेरौनक; और जिंदगी एक बोझ। ऐसे ढो रहे हैं लोग, जैसे पहाड़ सिर पर रखे हों। मरे जा रहे, दबे जा रहे! मैं दर्पण हूं, इससे ज्यादा नहीं। और जो तुम्हें मुझ में दिखाई पड़े, भूल कर मत सोचना कि दर्पण का है। तुम्हें अपनी तसवीर दिखाई पड़ रही है। इसकी तलाश में भीतर जाना। अगर इसकी तलाश में बाहर निकल गए, तो जो भूल चल रही थी, चलती रहेगी। ये बाहर तो ही दौड़ रहे हैं सारे लोग। कोई धन के लिए दौड़ रहा है। कोई पद के लिए दौड़ रहा है। तुम परमात्मा के लिए दौड़ने लगोगे। मगर दौड़ बाहर है। और जब तक दौड़ बाहर है, तब तक गलत है। किस चीज के लिए दौड़ते हो, इससे भेद नहीं पड़ता। जब तक बाहर दौड़ते हो--गलत दौड़ते हो। फिर सौ साल जीयो कि हजार साल जीयो, फर्क नहीं पड़ता। उपनिषदों में ययाति की कथा है। ययाति सौ वर्ष का हुआ। मौत आ गई। ययाति घबड़ा गया। उसने तो सोचा ही नहीं था कि कभी मरना है। मौन सोचता है कि कभी मरना है! मरणशय्या पर पड़ा हुआ आदमी भी नहीं सोचता कि मरना है। वह भी कल की योजना बनाता रहता है। कल के विचार करता रहता है। कल क्या करना है! मरते-मरते दम तक भी, आखिरी क्षण तक भी मौत को हम स्वीकार नहीं करते। जीने की अभीप्सा इतनी प्रबल है कि ययाति की जब सौ वर्ष में मौत आई, तो वह बहुत चौंक गया। गिड़गिड़ाने लगा। बड़ा सम्राट था, चक्रवर्ती था; मौत के चरणों में गिर पड़ा और कहा कि अभी मत ले जा। अभी मत ले जा। अभी तो मेरी जिंदगी की कोई भी तमन्ना पूरी नहीं हुई। जैसा तू कहती है। उठाए क्यों लिए जाते हो मुझको बागे-दुनिया से। नहीं देखी है दिल भर के बहारे जिंदगी मैंने।। ऐसा ही उसने कहा। इतनी जल्दी! कम से कम सौ साल मुझे और दे दो। दया करो। अभी तो कुछ भी पूरा नहीं हुआ। कोई वासना पूरी नहीं हुई। मौत को भी कहते हैं, दया आ गई। मौत ने कहा, मुझे किसी को तो ले जाना ही पड़ेगा। खानापूरी तो करनी ही पड़ेगी फाइल में। तुम्हारा बेटा अगर कोई जाने को राजी हो...। उसके सौ बेटे थे। ययाति की सौ पत्नियां थीं। उसने कहा कि कोई अड़चन नहीं। मेरे बेटे मेरा बड़ा आदर करते हैं, बड़ा सम्मान करते हैं। उसने सौ ही बेटे इकट्ठे कर लिए। उनमें कोई बेटा अस्सी साल का था। कोई अठहत्तर साल का था। कोई पचहत्तर साल का था। कोई सत्तर साल का था। बूढे थे। खुद भी बूढे हो रहे थे।
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