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ज्यों था त्यों ठहराया
पर पहुंचेगा--ऐसी कोई जगह नहीं छोड़ेगा; जहां-जहां तक संभावना है वहां-वहां तक जाएगा। सिर्फ एक जगह नहीं जाएगा--अपने भीतर नहीं जाएगा। ईश्वर ने कहा, यह बात जंचती है।
और अगर कभी कोई अपने भीतर जाएगा भी, तो अपने भीतर जाते-जाते इतना निर्मल और शांत हो जाएगा कि तुम्हें परेशान नहीं करेगा। कोई बुद्ध जाएगा; कोई महावीर, कोई लाओत्सू, कोई कन्फ्यूशियस, कोई जरथुस्त्र--इनसे तो कुछ पीड़ा न होगी। इनका तो आना आनंद ही होगा। ये अपने साथ नृत्य लाएंगे। ये अपने साथ गीत लाएंगे। कृष्ण की बांसुरी बजे भीतर, तो ईश्वर को कोई अड़चन नहीं हो सकती। बुद्ध की वाणी झरे भीतर, तो ईश्वर को क्या अड़चन हो सकती है। ये कुछ मांगेंगे नहीं। ये आएंगे, तो कुछ चढ़ाएंगे। ये आएंगे, तो अपने को चढ़ाएंगे। और ये आएंगे, तो खिले फूलों की भांति आएंगे। जुही खिले, बेला खिले, गुलाब खिले, तो भीतर की बगिया और प्यारी हो उठेगी। नए-नए रंग लाएंगे ये लोग। नए-नए ढंग लाएंगे। जीने की नई कला लाएंगे। नए-नए उपहार चढ़ाएंगे। अगर कोई आया भीतर, तो आते-आते रूपांतरित हो जाएगा। भीतर आने में व्यक्ति द्विज होता है, ब्राह्मण बनता है। ब्राह्मण बनता है, तो ब्रह्म के योग्य बनता है। और जैसे-जैसे योग्य बनता है, वैसे-वैसे ब्रह्म के साथ एक होता चला जाता है। जब तक कोई द्विज नहीं होता, तब तक जीवन में ऐसा ही होगा। अमृत प्रिया, तू कहती है: किसी को चैन से न देखा दुनिया में कभी मैंने। इसी हसरत में कर दी खतम सारी जिंदगी मैंने।।
औरों की तरफ देखो ही मत। पागल है तू। आंख बंद कर। अपनी तरफ देख। लोग औरों को देखने में कितना समय गंवा रहे हैं! इतनी देर में तो अपने से पहचान हो जाए। इतनी ही आंख अपने पर गड़ा लें, तो खुद से मुलाकात हो जाए; क्रांति हो जाए; रोशनी फूट पड़े। झरने अवरुद्ध हैं--बहने लगें। मुल्ला नसरुद्दीन--एक आदमी वंशी लटकाए मछली मारने बैठा है--उसके पीछे खड़ा देख रहा है। लाठी टेके खड़ा हुआ है। तीन घंटे हो गए। चार घंटे हो गए! मछली कुछ पकड़ी नहीं गई। आखिर मुल्ला के भी बर्दाश्त के बाहर हो गया। मुल्ला ने उससे कहा कि मेरे भाई, तुम भी क्या मछलीमार हो! अरे, क्यों सिर खपा रहे हो, चार घंटे से बेकार समय खराब कर रहे हो। एक मछली पकड़ी नहीं! उस आदमी ने कहा, बड़े मियां, मैं तो कम से कम पकड़ने की कोशिश कर रहा हूं। तुम यहां क्या कर रहे हो! तुम सिर्फ मुझे देख रहे हो। मैं तो शायद कभी मछली पकड़ भी लूंगा। तुम्हें क्या मिलेगा? तुम जो लाठी टेक कर यहां खड़े हो चार घंटे से। तुम सिर्फ यह देख रहे हो कि मैं मछली पकड़ पाता हूं कि नहीं। तुम्हें क्या लेना-देना है? न मछली से तुम्हें कुछ लेना, न मुझसे कुछ लेना। तुम तो रास्ता लगो! लोग एक-दूसरे को देख रहे हैं और सोच रहे हैं कि कैसी उदासी हैं! सब की नजरें दूसरों पर गड़ी हैं। इतने में तो अपने से पहचान हो जाए।
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