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ज्यों था त्यों ठहराया
तुम प्रेम करने को स्वतंत्र हो, लेकिन किसी के मालिक होने को स्वतंत्र नहीं हो। तुम किसी के जीवन पर छा जाना चाहो, हावी होना चाहो, यह तो अहंकार है--प्रेम नहीं है। प्रेम जानता है--स्वतंत्रता देना। खुश होओ कि अगर वह कहीं भी है और प्रसन्न है।...यही तो तुम चाहते थे कि वह प्रसन्न हो जाए। लेकिन नहीं। शायद तुम यह नहीं चाहते थे। तुम चाहते थे कि वह तुम्हारी छाया बन कर चले। तुम्हारे अहंकार की तृप्ति हो। वह तुम्हारा आभूषण बने। तुम दुनिया को कह सको कि देखो, मैंने इस युवती को जीत लिया! वह तुम्हारी विजय का प्रतीक बने, पताका बने। यह तुम्हारे अहंकार का ही आयोजन था। और अहंकार जहां है, वहां प्रेम नहीं है। और शायद इसी अहंकार के कारण वह किसी और की हो गई हो। समझदार रही होगी। अच्छा किया--किसी और की हो गई। तुम्हारी होती, तुम सताते। तुम्हारा अहंकार बता रहा है कि तुम उसकी छाती पर पत्थर बन कर बैठ जाते। अब तुम कह रहे हो, अब मैं जी तो रहा हूं, किंतु जीने का कोई रस न रहा। युवती को देखा था, उसके पहले जीते थे कि नहीं? तब रस था कि नहीं? तो अब क्या बिगड़ गया! जैसे पहले जीते थे बिना युवती के; युवती को जाना नहीं था, तब भी तो जीते थे न! मेरे पास लोग आ कर पूछते हैं कि हमें बड़ा डर लगता है कि मरने के बाद क्या होगा? मैं उनसे कहता हूं कि जन्म से पहले का तुम्हें कुछ डर लगता है? तुम थे या नहीं--कुछ पता है? वे कहते हैं, कुछ पता नहीं। कुछ हर्जा है नहीं थे तो? उन्होंने कहा, क्या हर्जा है! जब पता ही नहीं, तो रहे हों या न रहे हों। मैंने कहा, तो बस यही मौत के बाद होगा, जो जन्म के पहले था। इसलिए घबड़ाहट क्या है! जन्म के पहले का तुम्हें कुछ पता नहीं है। मौत के बाद का भी तुम्हें कुछ पता नहीं होगा। तो चिंता क्या कर रहे हो! युवती नहीं मिली थी, उसके पहले भी तुम जिंदा थे--और बड़ा रस था। और युवती को देखकर सारा रस खो गया! ऐसे गुलाम हो? और कल का तो भरोसा रखो--कल कहीं फिर कोई दूसरी युवती मिल जाए--उससे भी सुंदर, उससे भी आकर्षक--तो तुम परमात्मा को धन्यवाद दोगे कि अच्छा हुआ कि उस बाई से छुटकारा हो गया! मुल्ला नसरुद्दीन अपनी पत्नी के साथ जा रहा था। एक सुंदर स्त्री पास से गुजरी। खटक गई। आंख में अटक गई। पत्नी तो ऐसी चीजें एकदम से पहचान लेती हैं। पत्नी ने फौरन मुल्ला से कहा कि ऐसी सुंदर स्त्री को देखकर तुम्हें जरूर भूल ही जाता होगा कि तुम विवाहित हो! मुल्ला ने कहा कि नहीं; नहीं फजूल की मां! ऐसी स्त्रियों को देखकर ही मुझे याद आता है कि अरे, मैं विवाहित हं! हाय राम, मैं विवाहित हूं! ऐसी स्त्रियों को देखकर ही याद आता
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