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ज्यों था त्यों ठहराया
वहां तो शराबघर का वातावरण था। संन्यासी तो बहुत बेचैन हुआ। लेकिन जनक ने कहा, अब आ गए हो, तो कम से कम रात रुको, विश्राम करो। सुबह चले जाना।
सुबह संन्यासी को लेकर पीछे ही बहती हुई नदी में स्नान करने जनक गया। कपड़े दोनों ने उतार कर रखे। स्वामी के पास तीन ही कपड़े रहे होंगे। कपड़े बाहर रखे तट पर और दोनों नदी में उतरे। और जब दोनों नदी में उतरे, तो स्वामी एकदम चिल्लाया कि देखो, क्या हो गया! तुम्हारे महल में आग लगी है!
सम्राट ने कहा, लगी रहने दो। इस संसार में तो सभी चीजों को नष्ट हो जाना है। हम अपना स्नान जारी रखें !
स्वामी ने तो एकदम दौड़ लगा दी किनारे की तरफ वह बोला कि तुम जानो तुम्हारा महल जाने मेरे तीन कपड़े वे बिलकुल दीवाल के पास रखे हैं। कहीं जल न जाएं !
सम्राट ने कहा, थोड़ा सोचो मेरा महल जल रहा है और तुम सिर्फ तीन कपड़ों के पीछे भागे जा रहे हो! किसी आसक्ति ज्यादा है? किसका मोह ज्यादा है?
आसक्ति और मोह का संबंध मात्रा से नहीं होता। आसक्ति और मोह का संबंध बोध से होता
है।
तुम तीन कपड़ों से बंध सकते हो। एक लंगोटी से बंध सकते हो। उस एक लंगोटी को ऐसे पकड़ सकते हो, जैसे कि कोई साम्राज्य हो । और कोई व्यक्ति पूरे साम्राज्य के रहते अलिप्त रह सकता है। अलिप्त होने में अपरिग्रह है; लिप्त होने में परिग्रह है।
मात्राओं में मत उलझो मात्राओं से क्रांति नहीं होती।
गरीब आदमी, भिखमंगा, अपनी रुखी-सूखी रोटी को भी ऐसे कस कर पकड़े रखता है, उतना ही काफी है, उसमें ही उसका सारा मोह लग जाता है। लेकिन हम गणित से जी रहे हैं। हम मात्रा की भाषा में सोचते हैं। और जीवन की क्रांति गुणात्मक होती है--मात्रात्मक नहीं, परिमाणात्मक नहीं ।
ये क्या पागलपन की बातें हैं कि अपने पास केवल तीन ही वस्त्र रखो। अरे, तीन रखो कि तेरह रखो, इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता। सवाल यह है कि तुम वस्त्र नहीं हो यह स्मरण रखो। वस्त्र ही नहीं; तुम शरीर भी नहीं हो- यह स्मरण रखो। शरीर ही नहीं; तुम मन भी
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नहीं हो यह स्मरण रखो। फिर जितने वख रखना हो, रखे रहो, कुछ फर्क नहीं पड़ता । पहनोगे तो एक ही वख कोई अंतर नहीं पड़ता।
लेकिन बड़ा अजीब हिसाब है इस देश का । हम उलझ गए हैं बाहरी बातों में। और हमारे सब मापदंड बाहरी हो गए। तो हम पूछते हैं कि झोपड़े में है, तो महात्मा है। और महल में है... तुम जनक से चूक जाते जनक तुम्हें महात्मा नहीं मालूम होते जनक सच में ही महात्मा थे। तुम्हारे बहुत से महात्माओं से कई गुने ज्यादा, गुणात्मक रूप से भिन्न थे। कृष्ण तो साम्राज्य के बीच रहे। तीन कपड़े थे कृष्ण के पास - तुम सोचते हो? लेकिन मुक्त-परिपूर्ण मुक्त और जिनके पास तीन कपड़े हैं, वे मुक्त हैं? तब तो ये सारे देश में जो बिलकुल नंगे भूखे हैं, इन सब को स्वर्ग मिलने वाला है! फिर तो पशु-पक्षी जिनके पास एक भी वस्त्र नहीं हैं, ये तो तुम से आगे रहेंगे। लटपटानंद पीछे छूट जाएंगे ! गधे घोड़े आगे
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