________________
ज्यों था त्यों ठहराया
मैं कुछ ऐसी बातें कहता ही रहूंगा। वे मेरे छांटने के ढंग हैं। जिनको नाव से उतर जाना है, उनको मैं उतार ही देना चाहता हूं। मैं ऐसे लोगों को नाव में रखना ही नहीं चाहता, जो अपराधभाव से भरे हों। जिनके भीतर किसी तरह का द्वंद्व हो--इसके पहले कि वे जगह रोकें, मैं उनको मुक्त कर देना चाहता हूं। मगर लोग बड़े समझदार हैं! लुधियाना से आए हुए एक जैन मित्र ने पूछा है कि किसी बुद्धपुरुष ने कभी भी अपने प्रवचन के लिए फीस नहीं लगाई? वह बुद्धपुरुषों की गलती थी, इसमें मैं क्या करूं! इसलिए तुम जैसे नालायक उनके साथ जुड़ गए। मैं वह गलती नहीं करूंगा। मेरे अपने जीने का ढंग है। किसी बुद्धपुरुष से मुझसे क्या लेना-देना। वे अपने ढंग से जीए; मुझसे तो पूछा नहीं! मैं उनसे क्यों पूछं! महावीर को नग्न रहना था, वे नग्न रहे। बुद्ध तो नग्न नहीं रहे। कृष्ण तो नग्न नहीं रहे। ये सज्जन उनके पास पहुंच गए होते। और जरूर लुधियाना से लोग उनके पास पहुंचते रहे होंगे! पंजाब में तो एक से एक अदभुत लोग पैदा होते हैं। बुद्ध से लोग जा कर पूछते थे कि महावीर ने तो वस्त्र छोड़ दिए। आपने वस्त्र क्यों नहीं छोड़े?
और महावीर से लोग पूछते थे कि बुद्ध ने वस्त्र नहीं छोड़े; आपने वस्त्र क्यों छोड़े? कृष्ण तो बांसुरी बजा रहे हैं! आपकी बांसुरी कहां है? और राम तो धनुष-बाण लिए खड़े हैं। और आप नंग-धडंग खड़े हैं! हर बुद्धपुरुष का अपना ढंग होगा। बुद्धओं को छांटने का मेरा अपना ढंग है। मैं बुद्धओं पर मेहनत नहीं करना चाहता।
और जैन हैं, तो गरीब तो नहीं होंगे। पांच-दस रुपए बचाने के लिए ऐसे दीवाने हो रहे हैं। यह नहीं दिखाई पड़ेगा उन्हें कि हम पांच-दस रुपए बचाने की बात कर रहे हैं। मगर बात को यूं छिपाएंगे कि किसी बुद्धपुरुष ने तो फीस लगाई नहीं! पांच-दस रुपये बचाने हैं कुल जमा। और बुद्धपुरुषों ने तुम्हें क्या समझाया--कि परिग्रह मत रखना। तुमसे कम से कम पांच-दस रुपए का परिग्रह छुटवा रहा हूं--और क्या! इतना भी नहीं छूटता! और क्या खाक छोड़ोगे!
और मैं कोई भिखारी नहीं हूं, इसलिए दान मांगता नहीं; फीस लेता हूं। भीख क्यों मैं मांगू? मैं कोई भिखारी हूं! तुम्हें भीख देने का मजा है। तुम चाहते होओगे कि कोई भीख मांगे। तो तुम्हें मजा तो रहे--कि हमने दान दिया! वह अकड़ भी तुम्हारी यहां नहीं टिकने वाली। वह अहंकार भी तुम्हारा मैं यहां सुरक्षित नहीं रखता। यहां तो भीतर आना है, तो तुम्हें अपनी उत्सुकता जाहिर करनी पड़ेगी। और तुम आ रहे हो। तुम्हें कोई जबर्दस्ती बुला नहीं रहा है। तुम्हारी आकांक्षा हो--आओ। और तुम्हें पैसा बचाना हो, तो मत आओ। लेकिन मुझे सलाह मत दो। मैं किसी की सलाह कभी माना नहीं। और मुझे जो सलाह देने की हिम्मत करता है, वह क्या खाक मुझसे कुछ सीख कर जा सकेगा!
Page 202 of 255
http://www.oshoworld.com