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________________ ज्यों था त्यों ठहराया पहचान लेते। जिसने एक दीया देख लिया जलता हुआ, क्या वह दूसरे जलते हुए दीए को देख कर पहचान नहीं पाएगा कि यह जलता हुआ दीया है! लेकिन जिसने बुझा दीया--माना हो--कि जला हुआ दीया है--उसको अड़चन होगी। वह कैसे तय करे कि यह भी जला है कि नहीं! उसने ज्योति तो देखी नहीं। रही हो--न रही हो; मानी थी। रही हो--तो भी मानी थी। न रही हो, तो भी मानी थी। उसकी मान्यता थी। तुम्हारे मानने से कम्मू बाबा का सिद्ध-पुरुष होना या न होना कुछ भी संबंधित नहीं है। तुम मानो कि सिद्धपुरुष थे, तो तुम्हारी मान्यता है। तुम मानो कि नहीं सिद्ध-पुरुष थे, तो तुम्हारी मान्यता है। इससे कम्मू बाबा के संबंध में कुछ खबर नहीं मिलती। इससे सिर्फ तुम्हारी धारणा का पता चलता है। और तुम्हारी धारणा के कारण ही अड़चन आ रही है। तुम अपनी अतीत की धारणा को पकड़े हए बैठे हो। और अड़चन क्या है? अड़चन यह नहीं है कि कम्मू बाबा का तिरस्कार हो जाएगा। समझने की कोशिश करना अजयकृष्ण लखनपाल! अड़चन यह है कि तुम अपने अतीत में कोई भूल किए हो, यह मानने की तैयारी नहीं है। मेरा अतीत और भूल भरा हो सके? कि मैंने और गलत को पहचाना हो? कभी नहीं। अहंकार कहता है, ऐसा हो नहीं सकता। तुम और गलत को मानो! तुमने जब मानो, तो ठीक ही माना था। यह सवाल कम्मू बाबा को छोड़ने और नहीं छोड़ने का नहीं है। यह सवाल तुम्हारे अतीत के अहंकार को छोड़ने और नहीं छोड़ने का है। अड़चन वहां आ रही है। मगर अहंकार बड़ा चालबाज है। वह सीधा-साधा सामने खड़ा नहीं होता। नहीं तो तुम पहचान लोगे। वह पीछे से आता है। वह तुम्हें पीछे से पकड़ता है! वह तरकीब से पकड़ता है। वह बड़ी होशियारी से पकड़ता है। वह दूसरे के कंधे पर रख कर बंदूक चलाता है। अब वह कम्मू बाबा के कंधे पर बंदूक रख कर चला रहा है! कम्मू बाबा तो रहे नहीं, तो वह कह भी नहीं सकते कि भइया, मेरे कंधे पर बंदूक मत रखो। अब तुम्हारी मर्जी, किसी के भी कंधे पर रख लो। वह कम्मू बाबा के कंधे पर बंदूक रख कर चला रहा है तुम्हारा अहंकार। वह कह रहा है, संन्यास मत लेना। कम्मू बाबा का तिरस्कार हो जाएगा! असल बात यह है कि वह यह कह रहा है कि संन्यास मत लेना, नहीं तो मुझे त्यागना पड़ेगा! कम्मू बाबा से क्या लेना-देना! और कम्मू बाबा को अगर तुम पहचानते थे, तो संन्यास में क्षण भर की देरी करने की कोई जरूरत नहीं है। कोई आवश्यकता नहीं है। दो ज्योतियां अलग-अलग नहीं होती। हो ही नहीं सकतीं। ज्योति का स्वरूप एक है। उस बार भी तुम चूक गए; कम्मू बाबा के साथ भी तुम चूक गए। इस बार भी मत चूक जाना। तब तुम चूक गए मान्यता के कारण। जान न पाए और मान लिया। हमें सदियों से यही सिखाया गया है--मान लो। हम से यह कहा गया है कि मान लो, तो जान सकोगे। इससे बड़ी झूठ कोई बात नहीं हो सकती। Page 192 of 255 http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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