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ज्यों था त्यों ठहराया
कम्मू बाबा के फजल से ही मेरी आपके प्रति इतनी आसक्ति बढ़ गई हो। इस स्थिति में कृपया मेरा मार्गदर्शन कीजिए। मुझे इस द्वंद्व से मुक्त कीजिए।
अजयकृष्ण लखनपाल !
पहली तो बात यहः सदगुरु बंधन नहीं है -- मुक्ति है। सदगुरु से भी बंध जाओगे, तो तुमने मुक्ति को भी जंजीरों में ढाल लिया।
मैं हूं आज मुझसे जो सीख सको, सीख लो। जो जान सको जान लो और अगर तुमने मुझसे कुछ सीखा और जाना और वह अधूरा रह गया, तो वही रुक तो नहीं जाना है। कल फिर खोजना। जब मैं न रहूं, तो फिर किसी जीवित गुरु को खोजना। अगर तुमने एक बार जीवित गुरु को पहचाना हो थोड़ी भी उसकी छाया पाई हो, थोड़ी भी उससे किरण झलकी हो, तो यह द्वंद्व उठेगा ही नहीं क्योंकि दो सदगुरु भिन्न नहीं होते। हजार सदगुरु भी भिन्न नहीं होते। हजार शून्यों को भी पास ले आओ, तो एक ही शून्य बनता है।
नहीं, तुम उन्हें भी नहीं पहचाने। तुम मुझे भी नहीं पहचानते हो। तुम मानते हो कि तुमने उन्हें पहचाना। अगर पहचाना होता, तो यह द्वंद्व ही खड़ा न होता । तब तुम तत्क्षण मुझे पहचान लेते। तब देर ही न थी ।
साथ भी बंधन ही खड़े कर
लेकिन हमारी धारणाएं बड़ी अजीब हैं। हमने तो सदगुरुओं के लिए। कोई महावीर से बंध गया। तो पच्चीस सौ साल हो गए, पीढ़ी दर पीढ़ी बंधा हुआ है! अब महावीर का कहीं नामोनिशान न रहा जो महावीर के पास थे, उन्होंने कुछ पाया जरूर पाया। लेकिन अब पच्चीस सौ साल में जो परंपरागत रूप से महावीर को मान रहे हैं, उनके पास क्या है?
सत्य की कोई परंपरा नहीं होती ।
इसलिए तिरस्कार कभी होता ही नहीं ।
और सारे सदगुरुओं का संदेश एक है जब मैं न रहूं और तुम्हारे लिए कुछ अधूरा रह जाए, तो जरूर किसी सदगुरु को खोजना | वह मेरा तिरस्कार नहीं है। सच तो यह है कि वही मेरा सम्मान होगा। वही मेरा सम्मान होगा। क्योंकि तुमने इतना पाया था कि अब तुम उसे पूरा करने के लिए आतुर हो रहे हो। लेकिन सदगुरुओं के नाम से बहुत से तो झूठे गुरु चलते हैं वे यही सिखाते हैं कि गुरु यानी वैसा ही संबंध है, जैसा पति-पत्नी का । कि एक को चुन लिया, तो बस, एक के ही! ये झूठे गुरु तुम्हारा बंधन बन जाते हैं। इनका आग्रह वही है, जो पति-पनियों का है ये तुम्हें अपनी संपत्ति बना लेते हैं। ये तुम्हारे मालिक होकर बैठ जाते हैं।
और इनको डर होता है कि कहीं तुम हट न जाओ। तो ये तुम्हारे भीतर अपराधभाव पैदा करते हैं कि अब किसी और को मत चुनना । किसी और को चुनना अपमान होगा मेरा ! और तुम किसी और को चुनोगे, तो तुम्हारे भीतर ये अपराध के भाव को छोड़ जाएंगे एक भीतर घाव कर जाएंगे।
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