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ज्यों था त्यों ठहराया
वह उठा। उसने हाथ लगाया कि दरवाजा खुल गया! वह बाहर निकल गया। वे दोनों तो उलझे ही रहे पहेली सुलझाने में, जो सुलझने वाली थी ही नहीं। उनको तो तब नींद टूटी, जब सम्राट उस आदमी को लेकर भीतर आया और उसने कहा, भाइयो, अब हिसाबकिताब बंद करो जिसको बाहर निकलना था, वह निकल चुका है। वह वजीर चुन लिया गया है। अब तुम क्या कर रहे हो! अपने घर जाओ!
उन्होंने कहा, वह निकला कैसे! क्योंकि वह तो सिर्फ आंख बंद किए बैठा था ! सम्राट ने कहा, वह फकीर ने भी मुझसे कहा था कि उन तीनों में जो ध्यान करने में समर्थ होगा, वह बाहर आ जाएगा जो गणित बिठालने में बैठेंगे, वे अटक जाएंगे जो तर्क लगाएंगे, ये भटक जाएंगे। क्योंकि यह दरवाजा यूं है, जैसे जिंदगी।
जिंदगी कोई गणित नहीं कोई तर्क नहीं जिंदगी बड़ा खुला राज है जीओ मौन से, शांति से, परिपूर्णता से तो खुला राज है। मगर उलझ सकते हो तुम । प्रेम को जानने का एक ढंग है--प्रेम में डूबो लेकिन स्वभावतः जो होशियार आदमी है, चालबाज आदमी है, वह कहेगा, पहले मैं जान तो लूं कि प्रेम क्या है। फिर डूबूंगा! बस, चूकेगा फिर जिसने सोचा कि पहले जान लूं - - प्रेम क्या है... । कैसे जानेगा प्रेम ! प्रेम करके ही जाना जाता है। और तो जानने का कोई उपाय नहीं है। या है कोई उपाय ?
मिठास का अनुभव तो स्वाद में है और कोई उपाय नहीं । प्रकाश का अनुभव आंख खोलने में है। आंख बंद कर के कोई बैठा रहे और कहे कि आंख तब खोलूंगा, जब मैं जान लूं कि प्रकाश क्या है? है भी या नहीं! तब आंख खोलूंगा। वह सदा ही आंख बंद किए बैठा रहेगा । वह अंधा ही बना रहेगा ।
अरे, आंख खोलो! तुम कहते हो, जीवन क्या है? और जीवित हो तुम! जरा भीतर आंख खोलो। जीवन धड़क रहा है। कौन धड़क रहा है तुम्हारे हृदय में? यह धड़कन किसकी? ये श्वासें किसकी? यह कौन प्रश्न पूछ रहा है? यह कौन खोजता फिरा है?
एक मुअम्मा है, समझने का न समझाने का
जिंदगी काहे को है,
ख्वाब है दीवाने का।। हुश्न है जात मेरी, इश्क सिफअत है मेरी। हूं तो मैं शम्अ, मगर भेस है परवाने का ।। जिंदगी भी तो पशीमां है यहां ला के मुझे। ढूंडती है कोई हीला मेरे मर जाने का ।। अब उसे दार पे ले जा के सुला दे साकी । यूं बहकना नहीं अच्छा तेरे मस्ताने का।। हमने छानी हैं बहुत देरो हरम की गलियां । - कहीं पाया न ठिकाना तेरे दीवाने का।।
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किसकी आंखें दमे आखिर मुझे याद आती हैं। दिल मुरक्का है, छलकते हुए पैमाने का।।
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