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ज्यों था त्यों ठहराया
मैंने उनके बाप को, मां को कहा था कि तुम बिलकुल चुप रहना। यह मत कहना कि मैंने मक्खी पकड़ी। इसके भीतर से निकाली है। उन्होंने कहा, भई हमें माफ करो हमसे गलती हुई। तुम ठीक थे; हम गलत थे।
उसने कहा, लाइए मक्खी; मुझे दीजिए। मैं अपने उन सबको दिखाने जाऊंगा। अब बिलकुल सन्नाटा है। न कोई भनभनाहट । अब है ही नहीं मक्खी भीतर, वह खुद ही कहने लगा कि जब मक्खी भीतर है ही नहीं, निकल गई... यह रही मक्खी, तो बात खतम हो गई। तब से वह ठीक हो गा । तब से वह स्वस्थ हो गया । एक भावना गहन हो जाए, तो जरूर उसके परिणाम होने हैं। यह रुग्ण हुआ जा रहा था; दीन हुआ जा रहा था, थी, मगर परिणाम तो सच हो रहे थे।
जैसे कि कोई रस्सी में सांप को देख कर भाग खड़ा हो गिर पड़े पैर फिसल जाए, तो हड्डी टूट जाए। हड्डी टूटना तो सच है, मगर रस्सी में सांप झूठ था। और यह भी हो सकता है कि हार्ट अटैक हो जाए। भाग खड़ा हो जोर से; वजनी शरीर हो; गिर पड़े। हार्ट अटैक हो जाए। घबड़ा जाए। मर भी सकता है आदमी उस सांप को देख कर, जो था ही नहीं !
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मगर इसको दिखाई पड़ा। इसको दिखाई पड़ा, बस, उतना पर्याप्त है इसके लिए। हालांकि इसने भ्रांति कर ली थी। कल्पना कर ली थी। इसके भीतर से ही आरोपित हुआ था। यह सूत्र सारे धर्मों को भ्रष्ट किया है। इस तरह के सूत्रों ने ही आदमी को गलत रास्ते पर लगा दिया है। बस, भावना करो!
भावना से तुम जरूर परिणाम लाने शुरू कर दोगे। अगर तुमने भावना की मजबूती से तो परिणाम आने शुरू हो जाएंगे। लेकिन भावना चूंकि झूठ है इसलिए कभी भी खिसल सकती है। तुम जो मकान बना रहे हो, उसकी कोई बुनियाद नहीं है। तुम रेत पर महल खड़ा कर रहे हो, जो गिरेगा बुरी तरह गिरेगा और ऐसा गिरेगा कि तुम्हें भी चकनाचूर कर जाएगा। मैं तुम्हें भावना करने को नहीं कहता सहजानंद! मैं तो कहता निर्विचार हो जाओ, निर्भाव हो जाओ, निर्विकल्प हो जाओ सब भावना को जाने दो सब विचार को जाने दो। शून्य हो जाओ शून्य ही ध्यान है। निर्विचार ही ध्यान है और तब जो है, वह दिखाई पड़ेगा जब तक विचार है, तब तक कुछ का कुछ दिखाई पड़ता रहेगा । विचार विकृत करता है। विचार बीच में आ आ जाता है।
शुरू होंगे। परिणाम सच्चे हो सकते हीन हुआ जा रहा था। बात झूठी
विचार के कारण तुम्हें कुछ का कुछ दिखाई पड़ने लगता है। जो नहीं है, वह दिखाई पड़ने लगता है। जो है, वह नहीं दिखाई पड़ता । तुम खयाल करो, उपवास कर लो दो दिन का, और फिर बाजार में चले जाओ । उपवास के बाद तुमको बाजार में सिर्फ होटलें, रेस्टारेंट, चाय की दुकानें, भजिए की गंध इसी तरह की चीजें एकदम दिखाई पड़ेंगी, जो कभी नहीं दिखाई पड़ती थीं। क्योंकि दो दिन का उपवास तुम्हारे भीतर की मनोदशा बदल देगा। अब भोजन ही भोजन दिखाई पड़ेगा।
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