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________________ ज्यों था त्यों ठहराया जब वे मेरे पास तीन दिन रहे, तो मैंने उनसे कहा, क्या मैं पूछूं कि यह जो ईश्वर तुम्हें दिखाई पड़ता है--दिखाई पड़ता है या तुमने इसकी भावना की है? उन्होंने कहा, इसमें क्या भेद है? मैंने कहा, भेद कुछ बहुत बड़ा है। सूरज उगता है, तो दिखाई पड़ता है--तुम्हें भावना नहीं करनी पड़ती कि यह सूरज है! चांद निकलता है, तो तुम्हें दिखाई पड़ता है। तुम्हें भावना नहीं करनी पड़ती कि यह चांद है। सौंदर्य हो, तो दिखाई पड़ता है; तुम्हें भावना नहीं करनी पड़ती कि सौंदर्य है। भावना तो तब करनी पड़ती है, जब दिखाई न पड़ता हो । भावना से भ्रांति होती है। सतत कोई भावना करे और तीस साल निरंतर भावना की हो, तो स्वभावतः भावना आच्छादित हो जाएगी। तो मैंने उनसे कहा, एक काम करो, भेद साफ हो जाएगा। तीन दिन भावना करना बंद कर दो। उनको बात समझ में पड़ी। तीन दिन उन्होंने भावना नहीं की। चौथे दिन मुझ पर बहुत नाराज हो गए। उन्होंने कहा, मेरी तीस वर्ष की साधना नष्ट कर दी। मैंने कहा, जो तीस वर्ष में साधा हो, अगर तीन दिन में नष्ट होता हो, उसका मूल्य क्या है ? तो तुम कहीं पहुंचे नहीं । कल्पना में जी रहे थे। एक स्वप्न निर्मित कर लिया था अपने चारों तरफ अब तुम्हें वृक्ष दिखाई पड़ते हैं--परमात्मा दिखाई नहीं पड़ता क्या हुआ उस परमात्मा का ? अगर दिखाई पड़ गया था, तो तीन दिन में खो गया ! मैंने कहा, कुछ सीखो। नाराज न होओ। सीखने का यह है कि तीस साल व्यर्थ गए; नाह तुमने गंवाए। अभी भी देर नहीं हुई। अभी भी जिंदगी शेष है। भावना करना बंद करो । आंखों को निखारो भावना से लादो मत। भावना के चश्मे मत पहनो भावना चश्मे दे सकती -- है। कोई लाल रंग का चश्मा पहन ले -- सारा जगत लाल दिखाई पड़ने लगा ! लाल हुआ नहीं; न लाल है, मगर भावना का चश्मा चढ़ गया! उतारो चश्मा और जगत जैसा है, वैसा प्रकट हो जाएगा। सब लाली खो जाएगी। ही भ्रांति नहीं है, यह सूत्र व्यक्ति को झूठ करने का सूत्र है मगर इसी सूत्र पर दुनिया के सारे धर्म आरोपित हैं। यह योगवासिष्ट की यह भ्रांति सारे धर्मों के आधार में पड़ी हुई है। तुम जाते हो मंदिर में तुम्हें दिखाई तो पत्थर की मूर्ति पड़ती है, लेकिन भावना करते हो कि राम हैं, कृष्ण हैं, बुद्ध हैं, महावीर हैं। अपनी भावना के सामने झुकते हो तुम तुम्हें कुछ दिखाई नहीं पड़ रहा है। जैन के मंदिर में बौद्ध को ले जाओ, उसे झुकने का कोई मन नहीं होता। उसे महावीर बिलकुल दिखाई नहीं पड़ते पत्थर दिखाई पड़ता है। मुसलमान को ले जाओ तुम जब झुकते हो, तो वह हंसता है कि कैसी मूढता है! पत्थर के बुत के सामने - यह कैसी बुतपरस्ती! यह कैसा अंधापन! पत्थर के सामने झुक रहे हो! मगर तुम पत्थर के सामने नहीं झुक रहे हो तुमने तो अपनी भावना आरोपित कर रखी है तुम्हारे लिए तो तीर्थंकर हैं, महावीर हैं! Page 174 of 255 http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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