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ज्यों था त्यों ठहराया
किसी के तार बहुत कस जाती है कि छुओ, तो टूट जाएं। या किसी के तार बहुत ढीले कर कर जाती है--कि लाख खींचते रहो, संगीत उठे न। लेकिन अगर यहां आ गए हैं तुम्हारे माता-पिता, तुम्हारी बहन किसी बहाने से, तो यूं ही नहीं लौट जाएंगे। चाहे लौट जाएं-- मगर यूं ही नहीं लौट जाएंगे। मेरे टूटे हुए पाएतलब का मुझपे अहसां है तुम्हारे दर से उठ कर अब जाया नहीं जाता बड़ी मुश्किल से जाना होगा। और जाएंगे, तो भी मैं पीछा करूंगा। मैं याद आता रहूंगा। पिंकी ने अच्छा किया कि पूछा। कुछ हर्जा नहीं कि मां खिन्न हुई, नाराज हुई। यह स्वाभाविक है। यह साधारण है। इसमें कुछ चिंता की बात नहीं। वह भी पछताएगी। शायदर ईष्या भी जगी हो। शायद सोचा हो कि पिंकी ने पूछा और मैंने नहीं पूछा! मैं ही पूछ लेती। इसने पात्र बढ़ा लिया और मैं अटकी ही रह गई! शायद उसीर ईष्या में यह बात निकल आई हो। आदमी का मन बड़े उलझनों से भरा हुआ है, बड़े जालों से। उसे खुद भी पता नहीं होता कि किसलिए क्या बात हो जाती है। इतनी बेहोशी! इतनी गहन बेहोशी है!
तीसरा प्रश्न: भगवान, आप राजनेताओं का इतना मजाक क्यों उड़ाते हैं?
नरेंद्रनाथ! राजनेता किसी और काम के हैं भी तो नहीं। करो भी तो क्या करो! मैंने कम से कम उनके लिए काम निकाल लिया! एक बहाना निकाल लिया! उनके होने के लिए भी एक सार्थकता खोज ली! नहीं तो यूं तो बिलकुल निकम्मे हैं। किसी मतलब के नहीं। किसी मकसद के नहीं। एकदम थोथे। चलो, मैंने कम से कम कुछ तो अर्थ दिया--उनके निरर्थ जीवन को। इसलिए मजाक उड़ाता हूं। और इसलिए मजाक उड़ता हूं कि तुम कहीं राजनीति में न पड़ जाना। राजनीति प्रवंचना है। राजनीति का अर्थ क्या होता है? राजनीति का अर्थ होता है--दूसरों पर कब्जा पाना। पति पत्नी पर कब्जा कर ले। पत्नी पति पर कब्जा कर ले। मां-बाप बच्चों पर कब्जा कर लें। यह सब राजनीति है। राजनीति से तुम इतना ही मत समझना कि वे जो दिल्ली की तरफ जाते हैं, वे ही राजनेता हैं। जो भी दूसरे पर कब्जा करता है, वह राजनीति कर रहा है। छोटे पैमाने पर, बड़े पैमाने पर--यह बात और है। जिसकी जितनी हैसियत! मगर दूसरे पर कब्जा करने की कोशिश में राजनीति है। और अपने पर कब्जा करने की कोशिश में धर्म है। अपनी मालकियत धर्म है--और दूसरे का मालिक होना अधर्म है। राजनीति अधर्म है। और अधर्म का मजाक न उड़ाओ, तो क्या करो! मजाक उड़ाता हूं, क्योंकि ये अधर्म के जो गुब्बारे हैं, इनको अगर जरा सुई चुभा दो, उतने में ही फूट जाते हैं। मजाक ही काफी है। और बड़ी चोट करने की कोई जरूरत नहीं है।
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