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ज्यों था त्यों ठहराया
बुद्ध खड़े सुनते रहे। घड़ी भर सब सुना। और फिर अपने पिता को कहा कि एक बार मुझे गौर से तो देखें। मैं वही नहीं हूं, जो गया था। कोई और हूं। कुछ और होकर आया हूं। नया होकर आया हूं। कुछ संदेश ले कर आया हूं। कुछ सत्य ले कर आया हूं। कुछ पाया है, वह आपको भी देना चाहता हूं। इसीलिए आया हूं कि कहीं आपकी जिंदगी बेकार न चली जाए। मैंने तो उपलब्ध कर लिया। मैं तो भरा पूरा हो गया। आप अभी भी खाली हैं। इसलिए आया हूं। कहें तो लौट जाऊं। मगर एक बार मुझे आंख खोल कर तो देख लो। आंखों से आंसू हटाओ, क्रोध हटाओ, ताकि मुझे देख सको। बुद्ध के बाप तो गुस्से में थे। और गुस्से में आ गए कि तू समझता क्या है! हमने ही तुझे पैदा किया; मेरा ही खून है तू, और मुझसे कहता है कि हमें गौर से देखो! क्या मैं तुझे पहचानता नहीं? बुद्ध ने कहा, आप जरूर पहचानते हैं। लेकिन जिसे आप पहचानते थे, वह अब मैं रहा नहीं। मैं एक क्रांति से गुजर गया। बाप ने कहा, जा जा। ये बातें किसी और को बताना! ये किन्हीं और को समझाना। तू वही है। मैं तेरे चेहरे को देख रहा हूं। बुद्ध ने कहा, चेहरा वही है, मैं वही नहीं हूं। और आपको मैं इतनी याद दिला दूं कि आप यह भ्रांति छोड़ दें कि मैं आपसे पैदा हुआ। आपसे गुजरा जरूर। आपसे आया जरूर। आप माध्यम थे। लेकिन आप मेरे मालिक नहीं हैं। आप मेरे स्रष्टा नहीं हैं। स्रष्टा तो कोई और! कोई परम अज्ञात शक्ति! यह बात सुनकर बाप थोड़े चौंके। गौर से देखा! बात सच थी। चेहरा तो वही है, मगर आभा बदल गई है। संन्यस्त हुए। शायद वह पहली घटना थी--बाप ने बेटे से संन्यास लिया। फिर बुद्ध यशोधरा के पास गए। आनंद, उनका भिक्षु, उनका शिष्य सदा उनके साथ रहता था--छाया की तरह। बुद्ध ने उससे कहा, आनंद, तू थोड़ा पीछे छूट जा, क्योंकि अगर तू मौजूद रहेगा, तो यशोधरा बड़े कुलीन घर की लड़की है, तेरी मौजूदगी में वह कुछ भी न कहेगी। और बारह वर्षों से उसने कितना क्रोध कर रखा है इकट्ठा, वह मैं जानता हूं। उसका मोह बड़ा था। उतना ही क्रोध भी बड़ा होगा। वह आग में जल रही है बारह वर्षों से। किसी से कहा नहीं है। उसे कह लेने दे। निकल जाने दे। रेचन हो जाने दे। तू जरा पीछे छूट जा। अगर तू साथ ही खड़ा रहा, तो वह कुछ भी नहीं कहेगी। चुपचाप मेरे पैर छुएगी--और गटक जाएगी सारे क्रोध को। भद्र है। कुलीन है। राजघराने की है। यूं तेरे सामने बात कहेगी नहीं। मुंह नहीं उठाएगी घूघट नहीं उठाएगी; बात कहने की तो बात और है। तू पीछे छूट जा। आनंद पीछे रह गया।
और सच आनंद चकित हुआ यह जान कर कि वह एकदम पागल की तरह टूट पड़ी बुद्ध पर। चीखी! चिल्लायी! रोई! नाराज हुई! और जो पिंकी की मां ने कहा पिंकी को कि तूने मुझसे पूछ कर क्यों नहीं पूछा! वही यशोधरा ने बुद्ध से कहा कि तुम मुझसे पूछ कर क्यों नहीं गए? मैं तुम्हारी पत्नी थी, मुझसे पूछने में क्या एतराज था? बुद्ध ने कहा, तू यह देख कि अगर मैं तुझसे पूछता--तू मुझे जाने देती? बारह वर्षों बाद भी इतनी क्रुद्ध हो रही है तू, उसी
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