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ज्यों था त्यों ठहराया
अब पिंकी ने कुछ गलत बात तो नहीं पूछी थी। कुछ पाप तो नहीं किया था। और अगर उसने अपने हृदय का सच्चा-सच्चा भाव कहा, तो उचित है कि कह ही देना चाहिए। अगर उसे विवाह नहीं करना है, तो तुम जबर्दस्ती उस पर विवाह थोप दोगे, तो जिंदगी भर तुम्हें कोसेगी। जिंदगी भर पीड़ित रहेगी। हालांकि तुम उसके भले के लिए ही कर रहे हो। मगर भला होगा नहीं। तुम्हारी भली आकांक्षा अनिवार्य नहीं है कि भलापन लाए। तुम अगर जबर्दस्ती उस पर विवाह थोप दो, तो वह जिंदगी भर दुखी रहेगी, और तुम्हें कभी क्षमा न कर पाएगी। मौका दो--प्रत्येक व्यक्ति को हक दो जीने का। और कोई छोटी नहीं है वह। कोई बच्ची नहीं है। सोच सकती है। विचार सकती है। मेरा तो खयाल था सत्रह अट्ठारह साल की होगी। लेकिन चौबीस साल की है, सत्रह अट्ठारह साल की नहीं। सरल है, इसलिए मुझे लगा कि उम्र कम होगी। चौबीस साल की है। अब चौबीस साल! करीब-करीब जिंदगी का एक तिहाई हिस्सा जी चुकी। अगर पचहत्तर साल की उम्र हो, तो पच्चीस साल एक तिहाई हिस्सा हो गया। कब तुम उसे मौका दोगे कि कम से कम अपना प्रश्न पूछ सके, अपना भाव प्रकट कर सके! समझने की चेष्टा कर सके! इतनी भी आजादी अगर प्रेम न दे, तो यह कैसा प्रेम है! तुमने पूछा है संत कि आपने पिंकी को उत्तर दिया। उसके बाद मेरी मां ने पिंकी के दोनों हाथ पकड़ कर कहा--तूने क्यों प्रश्न भेजा? अब तो यह बात रिकार्ड हो गई। सब को पता चल गया। प्रश्न पूछने से पहले हम से क्या नहीं पूछा? क्यों पूछे तुमसे? आत्मा उसके भीतर भी है। हृदय उसका भी अपना है। तुमने उसके शरीर को जन्म दिया, इसका यह अर्थ नहीं कि तुम उसकी आत्मा के मालिक हो गए! बच्चों को जन्म दो, लेकिन बच्चे तुम्हारे नहीं हैं; परमात्मा के हैं। इसे कभी भूल मत जाना। बच्चों को प्रेम दो, लेकिन प्रेम बंधन नहीं है। प्रेम स्वतंत्रता देता है। बच्चों को सम्मान भी दो, अगर चाहते हो कि वे तुम्हें सम्मान दें। लेकिन इस देश में तो बड़ी उलटी धारा है। इस देश में कोई सोचता ही नहीं कि बच्चों का भी कोई सम्मान है। फिर ये बच्चे बड़े होकर बूढे मां-बाप को अगर सताते हैं, तो क्या गलत करते हैं! ये उत्तर दे रहे हैं। जो तुमने इनके साथ किया, वही ये तुम्हारे साथ कर रहे हैं। जब ये कमजोर थे, छोटे थे, बच्चे थे, तुमने इन्हें सताया। अब ये बड़े हो गए, तुम बूढे हो गए, तुम कमजोर हो गए, अब ये तुम्हें सताएंगे। वही गणित है। जो कमजोर है, वह सताया जाएगा। ताकतवर उसे सताएगा। फिर मां-बाप रोते हैं कि बेटे सता रहे हैं। बेटियां सता रही हैं। बहुएं सता रही हैं। हमारी सुनते नहीं हैं! हमें बिलकुल यूं कर दिया है एक किनारे, जैसे हम हैं ही नहीं! लेकिन तुमने इनके साथ क्या किया था, जब ये छोटे-छोटे बच्चे थे, जब इनकी कोई ताकत न थी, जब ये असहाय थे, जब ये तुम्हारे ऊपर निर्भर थे, तब तुमने इन्हें प्रश्न भी न पूछने दिया। तब इन्हें तुमने इतनी भी स्वतंत्रता न दी कि अपने मन की बात कह सकें! तो फिर स्वभावतः ये तुम्हें भी इसका बदला चुकाएंगे। और फिर कष्ट होता है।
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