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ज्यों था त्यों ठहराया
कल सब ठीक हो जाएगा। कल कभी आता है? जो नहीं आता, उसी का नाम कल है। तुम किसी भिखमंगे से भी कहोगे--किसलिए जी रहे हो? तो नाराज हो जाएगा। तुम्हें नहीं दिखाई पड़ेगा कोई कारण जीने का। लेकिन जीवेषणा ऐसी है कि हर हाल आदमी जीए जाता है! गहन अकाल के दिनों में माताएं अपने बच्चों को काट कर खा गईं! बापों ने अपनी बेटियां बेच दी। टूट गए सब नाते; छूट गए सब रिश्ते। अपने जीवन की आकांक्षा इतनी है कि आदमी कुछ भी कर सकता है! जिसके लिए जीते थे, उसी को मार भी सकता है। ऐसी अवस्था में पता नहीं चलता। कांटों में बिंधे पड़े रहते हैं, और फूलों के सपने देखते रहते हैं! यह श्लोक ठीक कहता है कि जो संसार में अत्यंत मूढ हैं, वे सुखी हैं। सुखी इसलिए कि उनकी मूढता इतनी सघन है कि उन्हें मूढता का भी पता नहीं। मूढता का पता जिसे चल गया, वह तो मूढ न रहा। कल ही मैंने देखा श्री मोरारजी देसाई का एक वक्तव्य। एक पत्रकार परिषद में उनसे पूछ गया कि आप आचार्य रजनीश का गुजरात में आगमन हो रहा है--कच्छ में--उसका विरोध करेंगे या नहीं? आप विरोध की अगवानी क्यों नहीं करते? कच्छ में प्रवेश न हो, इस विरोध में आप नेतृत्व क्यों हाथ में नहीं लेते? तो उन्होंने कहा कि कच्छ की जनता ही विरोध करेगी। और आचार्य रजनीश का वे ही लोग समर्थन करते हैं, जो मूर्ख हैं, मूढ हैं! मैंने वक्तव्य पढ़ा, तो सोचा या तो मोरारजी देसाई को अपना वक्तव्य वापस लेना चाहिए या फिर मेरा समर्थन करना चाहिए। दो में से कुछ एक करना चाहिए। अगर वक्तव्य सही है, तो मेरा समर्थन करना चाहिए, क्योंकि वे तो मूढता में सर्वोच्च हैं! अरे, प्रधानमंत्री का पद तो आया-गया! अब तो भूतपूर्व हो गए; भूत हो गए! लेकिन मूढता तो निज की संपदा है; उसमें कभी भूतपूर्व होने की संभावना नहीं दिखती। मगर परम मूढता यह है कि दूसरों को मूढ समझते हैं। खुद की मूढता का खयाल नहीं होता। एक से एक मूर्खतापूर्ण बातें वे रोज कहते हैं! और खयाल में भी नहीं कि क्या कह रहे हैं! कच्छ की जनता को मुझसे कोई विरोध नहीं है। अगर विरोध है, तो मोरारजी देसाई को और उनके साथ हार गए राजनीतिज्ञों को--इने-गिने थोड़े से लोग। कच्छ की जनता तो स्वागत के लिए तैयार है। रोज कच्छ से लोग यहां आ रहे हैं। अभी परसों ही मांडवी का एक प्रतिनिधि मंडल आठ व्यक्तियों का यह निवेदन करने आया था कि आप जो कच्छ के, मोरारजी देसाई के जो संगी-साथी हैं, वे जो शोरगुल मचा रहे हैं, उस भ्रांति में आप जरा भी न पड़ना। हम आपके स्वागत के लिए आंखें बिछाए बैठे हैं। कच्छ के लोगों को कोई विरोध नहीं है। विरोध है तो ये कुछ कछुओं को--जिनकी चमड़ी इतनी मोटी है कि जिसमें कुछ घुसता ही नहीं! मूढ सुखी अनुभव करता है अपने को, इसलिए कि उसे दुख का बोध नहीं होता। इसीलिए तो जब किसी का आपरेशन करते हैं, तो पहले उसे बेहोश कर देते हैं। बेहोश हो गया, तो फिर दुख का पता नहीं चलता। फिर उसके हाथ काटो, पैर काटो, एपेंडिक्स निकाल लो। जो
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