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ज्यों था त्यों ठहराया
अभी मुझ पर ही कुछ दिन पहले एक आदमी छुरा मार गया--छुरा फेंक कर--कि इस आदमी को खतम ही करो। अब इस बेचारे की कोई नींद टूट रही होगी। इसको कहीं चोट पड़ रही होगी। इसका सपना कहीं खिसक रहा होगा। कहीं फरिश्ता चला जाए! और बंधा नोट करीब ही था! निन्यानबे से सौ में दूरी भी क्या थी! अरे, इतनी दूर खींचतान कर ले आए थे। एक ही रुपए की बात थी। जब निन्यानबे तक खींच लिया, तो एक और खिंच जाता। मगर नींद बेवक्त तोड़ दी! तो गुस्सा तो आ ही जाए! छुरा फेंकने में वही गुस्सा है। तुमने हमेशा ही सदगुरुओं के साथ असद व्यवहार किया है। मगर तुम क्षमा योग्य हो। जीसस ने मरते वक्त अंतिम वचन जो कहे कि हे प्रभु, इन सब को क्षमा कर देना, क्योंकि इन्हें पता नहीं, ये क्या कर रहे हैं। इन्हें पता नहीं कि ये क्या कर रहे हैं! ये बिलकुल नींद में हैं। ये बेहोश हैं। मैं जगाने की कोशिश कर कर रहा था। इनको पता ही नहीं है; नींद के सिवाय इन्होंने कुछ जाना ही नहीं है। सपने ही इनकी संपदा हैं। तो जगाने में अड़चन तो है। तुम पूछते हो सत्यप्रेम, क्या मैं भी कभी उस ज्योति को पा सकूँगा, जिसके दर्शन आप में मुझे होते हैं? निश्चित ही। जरा भी संदेह का कारण नहीं है। आश्वस्त होओ। तुम्हारे भीतर ज्योति मौजूद है। तुम उसे लेकर ही पैदा हुए हो। पाने कहीं बाहर भी नहीं जाना है--न काबा, न काशी, न कैलाश। जरा भीतर मुड़कर देखना है--और क्रांति घटित हो जाती है। और चमत्कारों का चमत्कार घटित हो जाता है। आज इतना ही। छठवां प्रवचन; दिनांक १६ सितंबर, १९८०; श्री रजनीश आश्रम, पूना
दुख से जागो
पहला प्रश्नः भगवान, श्रीमदभागवत में यह श्लोक है: यश्च मूढतमो लोके यश्च बुद्धेः परं गतः। तावुभौ सुखमेघेते क्लिश्यत्यंतरितो जनः।। संसार में जो अत्यंत मूढ है और जो परमज्ञानी है, वे दोनों सुख में रहते हैं। परंतु जो दोनों की बीच की स्थिति में है, वह क्लेश को प्राप्त होता है। क्या ऐसा ही है भगवान?
आनंद मैत्रेय!
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