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ज्यों था त्यों ठहराया
उधर पहलू से तुम उठे, इधर दुनिया से हम उठे। चलो हम भी तुम्हारे साथ ही तैयार बैठे हैं।। किसे फुर्सत, कि फर्जे-खिदमते-उल्फत बजा लाए। न तुम बेकार बैठे हो, न हम बेकार बैठे हैं।। मकामे-दस्तगीरी है, कि तेरे राहरोए उल्फत। हजारों जुस्तुजूएं करके हिम्मत हार बैठे हैं।। न पूछो कौन हैं, क्या मुद्दआ है, कुछ नहीं बाबा। गदा हैं और जेरे-सायो-दीवार बैठे हैं।। थक गए हो। बहुत-सी अभीप्साएं की, आकांक्षाएं की। हर सपना टूटा, तो हताश हो गए हो। इसलिए पूछते हो, क्या मैं भी कभी उस ज्योति के दर्शन पा सकूँगा? डर गए हो। भयभीत हो गए हो। मकामे-दस्तगीरी है, कि तेरे राहरोए-उल्फत। हजारों जुस्तुजूएं करके हिम्मत हार बैठे हैं।। तुम भी उस प्रेम-पथ के राही हो, लेकिन गलत आकांक्षाएं करके हार गए हो। गलत आकांक्षाएं पूरी नहीं होती। धन पाने चलोगे, पा लोगे, तो भी हारोगे। और न पाया, तो तो हारोगे ही। पद पाने चलोगे। पा लिया, तो भी हारोगे; न पाया, तो तो हारोगे ही। क्योंकि जिन्होंने पा लिया, उन्होंने भी कुछ न पाया। धन पा कर भी क्या मिलता है? भीतर की निर्धनता और प्रगाढ़ हो जाती है। पद पा कर क्या मिलता है? भीतर की हीनता और उभर कर दिखाई पड़ने लगती है। जैसे कोई सफेद खड़िया से ब्लैकबोर्ड पर लिखता है। सफेद दीवाल पर लिखे, तो पता नहीं चलता। गरीब आदमी को अपनी गरीबी उतनी पता नहीं चलती, जितनी अमीर आदमी को अपनी गरीबी पता चलती है। काली दीवाल पर सफेद खड़िया की तरह अक्षर उभर आते हैं। न पूछो कौन हैं, क्या मुद्दआ है, कुछ नहीं बाबा! इतने थक गए हो कि कहते हो, मत पूछो। पूछो ही मत कि क्या उद्देश्य है। न पूछो कौन हैं, क्या मुद्दआ है, कुछ नहीं बाबा। गदा हैं और जेरे-सायाए-दीवार बैठे हैं।। भिखारी हैं और दीवाल की छाया में बैठे हैं। मत पूछो बाबा कि कौन हैं? क्या हैं? ऐसी थकी हालत है। इसलिए तुम यह कह रहे हो कि भगवान, क्या मैं भी कभी उस ज्योति को पा सकूँगा? क्यों नहीं! अभी पा सकते हो। कभी की बात ही मत छेड़ो। कभी में तो हताशा आ गई, निराशा आ गई। मेरा तो जोर अभी पर है--यहां और अभी। समझो, तो अभी मुड़ सकते हो। कोई रोक नहीं रहा। सिवाय तुम्हारी हताशा और निराशा के और कोई बाधा नहीं है। गिर जाने दो इन हताशा को।
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