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________________ ज्यों था त्यों ठहराया मैंने कहा, जैसी तुम्हारी मर्जी। रूमाल बांध दो। अब मैं आ गया हूं, तो लौट कर जाऊं, तो तुम दुखी होओगे। बांध दो तुम रूमाल। मैं रूमाल बांध कर ही मंदिर में आ जाता हूं। अब आ ही गया हूं, तो तुम्हारी यह शर्त भी मान लूंगा। लेकिन क्या तुम सोचते हो--सिर पर पगड़ी रख लेने से या रूमाल बांध लेने से सम्मान हो जाएगा! क्या सम्मान और अपमान इतनी थोथी बातें हैं? इतनी सरलता से हल हो सकती हैं? लेकिन माटी के खिलौने से बहल जाते हैं लोग! मैंने रूमाल रख लिया सिर पर, वे बड़े प्रसन्न हो गए, बड़े आनंदित हो गए। बड़े परेशान थे। अपमान हुआ जा रहा है! फिर जब मुझे अंदर ले चले, तो उनमें से एक ने कहा कि आप जानकर खुश होंगे कि हमारे यहां हिंदू-मुसलमान का कोई भेद नहीं। हिंदू भी आ सकते हैं मुसलमान भी आ सकते हैं। मैंने कहा, तुम छोड़ो यह बकवास। बिना टोपी लगाए नहीं आ सकता है तुम हिंदू-मुसलमान की बातें कर रहे हो! और जब तुम कहते हो कि--हमारे यहां हिंदू-मुसलमान का कोई भेद नहीं--तो यह बात ही क्यों कर रहे हो कि हिंदू भी आ सकते हैं। मुसलमान भी आ सकते हैं! भेद तो हो गया। नहीं तो कौन हिंदू! कौन मुसलमान! कैसा हिंदू--कैसा मुसलमान! तुमने भेद तो कर ही लिया। नानक को भेद नहीं था। तो वे मक्का भी चले गए थे। काबा भी चले गए थे। और जरा सोचो, नानक को और उनकी परंपरा में आए हुए स्वर्ण-मंदिर के इन रक्षकों को--कितना भेद है। नानक पैर कर के सो गए थे काबा के पत्थर की तरफ। स्वभावतः इसी तरह के पुजारी रहे होंगे, जिस तरह के ये पुजारी थे। उनको बड़ी बेचैनी हो गई। काबा के पुजारी! और कोई आदमी आकर काबा के पत्थर की तरफ पैर कर के सो जाए! अपमान हुआ जा रहा है! जैसा कि मेरा बिना टोपी लगाए प्रवेश करने से अपमान होता है, तो पैर रखने से तो हो ही जाएगा। और अगर तुम मूर्ति की तरफ कर के लेटोगे या मंदिर की तरफ कर के लेटोगे या काबा के पत्थर की तरफ कर के लेटोगे, तो स्वभावतः...।। मैंने उनसे कहा, तुम थोड़ा सोचो, तुम नानक को मानने वाले लोग हो। मैंने सिर्फ टोपी नहीं लगाई है। और सच यह है कि कोई बच्चा टोपी लगाए पैदा होता नहीं। अब तक सुना नहीं। सो परमात्मा बिना ही टोपी लगाए भेजता है। टोपी वगैरह लगाना सब हमारे खिलौने हैं। तुम महावीर को तो अंदर ही न घुसने देते। वे तो नंगधडंग आते। मैं तो कम से कम कपड़े पहने हूं! और महावीर रूमाल भी नहीं बांधते--यह भी मैं तुमसे कहे दे रहा हूं। क्योंकि जो आदमी नंगा खड़ा हो, वह रूमाल बांधे--जंचेगा नहीं। वह तो ऐसा हुआ, जैसे नंगा आदमी टाई बांधे! यह बिलकुल ही बेहूदी बात हो जाएगी--कि जब नंगे ही खड़े हो, तो टोपी किसलिए लगाए हो! वह तो यूं बात हो जाएगी-- एक दिन मुल्ला नसरुद्दीन के घर कोई मिलने आ गया, एक दंपति। दरवाजा खटखटाया, तो मुल्ला ने जरा-सा दरवाजा खोल कर देखा। मगर उतने में उन लोगों ने भी देख लिया-- Page 135 of 255 http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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